मिटकौना

mitkauna

हमने तमाम ग़लतियाँ कीं

हमने तमाम अपराध किए

हमारे पास भरने वाले ज़ख़्म थे

घृणा हमारे अंदर तक भरी थी

और ग़ुस्सा इतना

कि अपने भले-बुरे तक की नहीं सोच पाते

कुछ करने की जब भी शुरुआत की

टेढा-तिरछा-आड़ा-बेड़ा हमेशा हुआ

हमारे पास दुनिया भर के सबक़ थे

हमारे सामने तमाम तरह की राहें थीं

हमारे पास बहकने के तमाम संसाधन थे

हमारे पास दुःख की एक वर्णमाला थी

हमारी अँगुलियाँ पकड़ कर सिखाने वाला कोई नहीं था

फिर भी सीखा हमने चलना कँटीले राहों पर

फिर भी सीखा हमने लड़ना विसंगतियों के ख़िलाफ़

फिर भी सीखा हमने हँसना बुरे से बुरे वक़्त में भी

फिर भी सीखा हमने इंसान बनना इस अमानवीय समय में भी

फिर भी सीखा हमने बोलना हर चुप्पी के ख़िलाफ़

इस तरह बचे रहे हम सदियों-सहस्त्राब्दियों तलक

क्योंकि हमारे पास एक ज्योमेट्री बाक्स था

जिसमें इंची-चाँदा-परकार जैसे विचारों के साथ-साथ

कोने में एक तरफ़ पड़ा एक छोटा-सा मिटकौना भी था

हमारी सारी असफलताओं, हमारे सारे अवसादों

हमारी तमाम पराज़यों, हमारे तमाम अपमानों को

पूरी तरह मिटाकर फिर से एक नया कैनवास तैयार करता हुआ

एक नए सिरे से चलने के लिए हमें उकसाता हुआ

एक नए सिरे से सोचने के लिए हमें तैयार करता हुआ

कुछ भी अमिट नहीं इस दुनिया में

कुछ भी असंभव नहीं जीवन के शब्दकोश में

यह मिटकौने की समझाइश थी

हमारे मन में सुरक्षित रहा हमेशा यह मिटकौना

ग़रूर से भरे आवारागर्द समय में भी

हमारे आगे बढ़ने की तमाम गुंजाइशें बचाता हुआ

स्रोत :
  • रचनाकार : संतोष कुमार चतुर्वेदी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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