मेरी ज़ुबान

meri zuban

हरि मृदुल

हरि मृदुल

मेरी ज़ुबान

हरि मृदुल

और अधिकहरि मृदुल

    मेरी जीभ काली

    मेरी ज़ुबान कड़वी

    सही को ही सही

    ग़लत को ग़लत

    आपका कहना :

    आज की दुनिया में

    यह सोच ही ग़लत

    आपकी सलाह कि

    सोच समझकर बोलूँ

    ज़रा मीठा बोलूँ

    तो क्या मैं यह कह दूँ कि

    देश के सभी किसान हैं बहुत ख़ुशहाल

    उनकी आत्महत्याओं की ख़बरें

    हैं सरकार गिराने की करतूतें

    तो क्या मैं यह कह दूँ कि

    नर्मदा बाँध के पीड़ितों को मिल चुका है पूरा न्याय

    मेधा पाटकर का अनशन महज़ ड्रामा

    तो क्या मैं यह भी कह दूँ कि

    मुंबई के तमाम मज़दूरों ने

    अपने मिल मालिकों को बधाई दी है

    इन्हें मॅाल में बदलने के लिए

    ऐसी तो अभी बीसियों बातें

    जिन्हें बोला ही जाना है

    मेरे जैसे हज़ारों मुँह

    जिन्हें जल्द खुलना है

    ऐेसे में यह आपकी सलाह :

    सोच-समझकर बोलूँ

    ज़रा मीठा बोलूँ

    मेरी जीभ काली

    मेरी ज़ुबान कड़वी

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरि मृदुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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