मेरे तुम्हारे बीच

mere tumhare beech

ममता बारहठ

ममता बारहठ

मेरे तुम्हारे बीच

ममता बारहठ

और अधिकममता बारहठ

    मेरे तुम्हारे बीच ये जो बहुत बड़ा संसार है

    उसे पार करके नहीं,

    साथ लेकर तुम्हारे पास आना चाहती हूँ

    ख़ूब चाहा

    पर चाह कर भी कभी

    मैं पार नहीं कर पाई

    'हमारे बीच को'

    जब भी तुम्हारी ओर निकलती हूँ

    कुछ क़दम चल कर

    खो जाती हूँ

    फिर कई दिन मिलती नहीं मैं ख़ुद को

    मैंने देखा कि

    हमारे बीच का ये संसार

    दूर तक फैला हमारा ही तो विस्तार है

    जिसके सिरे कहीं कहीं मिल जाते हैं

    मैं कभी-कभी जा पहुँचती हूँ उस सिरे तक भी

    जहाँ मेरा आख़िर तुम्हारे आरंभ से जा मिलता है

    और मैं अपनी इन दो छोटी आँखों से

    पूरा संसार नाप लेती हूँ

    और जीवन में केवल उन्हीं क्षणों में

    मैं कह पाई हूँ कि प्रेम है मुझे

    या कि बस प्रेम ही को हूँ मैं।

    दो लहरें मिलती है

    अपने अपने संसार को साथ लेकर

    अपना आप वहाँ तक खींच लाती हैं

    जहाँ तक दूसरी लहर का आप चला आया

    और अंततः दोनों मिलकर अपना आप भूल जाती है

    जब हम साथ नहीं होते

    उस समय साथ के बीच कहीं होते हैं

    एक दूसरे को सामने देख लेना

    साथ ही के अलग अलग किनारों पर खड़े हो

    देख लेना होता है एक दूजे को,

    और छूटते जाना दीख से

    डूबते जाना होता है साथ के गहरे में कहीं

    मेरे तुम्हारे बीच जो बहुत बड़ा संसार है

    इसका बहुत बड़ा हिस्सा महासागर है

    भावों की लहरें, एक पर एक गिरती,

    संभलती, बहती जाती है

    जिसपर

    दुःख एक सफ़ेद पंछी जैसा आता

    और बिना एक भी क़तरा छुए

    समंदर को मथ कर रख देता है

    हमारे बीच व्याप्त दुःखों के इस सागर को

    मैं पार करके नहीं,

    साथ लेकर तुम्हारे पास आऊँगी

    मेरे तुम्हारे बीच

    एक भूखा बच्चा

    अपनी आँखों में दूधिया ख़्वाब लिए

    दौड़ रहा है हाथ फैलाए सड़कों पर

    नन्हें हाथ उसके आसमाँ की ओर खुले हैं

    पाँव की छोटी उँगलियाँ

    ठोकर मारते हुए ज़माने को ज़ख़्मी हो रही है

    धड़क रहा है जो मेरे भीतर

    वो उसी की हाँफती साँसे हैं

    भूखे पेट,

    मासूम एक

    इस कड़कड़ाती ठंड में मेरे भीतर

    सिकुड़ता जा रहा

    मैं उससे गुज़रकर नहीं

    साथ लेकर तुम्हारे पास आऊँगी

    धधक रहा एक अलाव हर क्षण

    मेरे तुम्हारे बीच

    एक चिड़िया अपने घोंसले के तिनके

    निकाल कर फेंक रही है लगातार उसमें

    एक आसमाँ पिघल रहा है

    मेरे तुम्हारे बीच

    एक दरिया खोये जा रहा है अपनी बनाई राहों में

    कोई प्यासा भटक रहा है अपनी ही प्यास के घेरे में

    एक तारा टूटकर गिर रहा है लगातार

    अपनी ही किरचों के मलबे में

    मेरे तुम्हारे बीच

    हमारे बीच के इस संसार को

    मैं पार करके नहीं

    साथ लेकर आऊँगी पास तुम्हारे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : ममता बारहठ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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