मेकअप मैन

mekap main

अनामिका

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    इतने रहमदिल थे शौकत अली,

    भागे भी तो अपनी महबूबा के

    चार-चार बच्चों के साथ

    और उसके बाद उसके शौहर को चिट्ठी लिखी :

    ''माफ़ कर दें, जनाब!

    आप अपना ख़याल रखें,

    मैं इनकी देख-भाल ठीक ही करूँगा!

    आप इनका हलवा टाइट रखते थे!

    ज़ाहिर है, आप भी ख़ुश तो नहीं थे!

    अब ख़ुश रहें

    और किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो

    हमें इत्तला करें!”

    दूरदर्शन में मेकअप मैन थे

    मेक-अप करते-करते

    आजिज़ जब हद से ज़्यादा हो जाते थे,

    हाथ रख लेते थे सर पर

    और बुदबुदाते थे :

    ''क़ुदरत भी हद करती है कभी-कभी!

    दुनिया की आर्ट गैलरी में

    टाँग दिए हैं उसने ज़्यादातर चेहरे

    अपनी रफ़ कॉपी से सीधा उठाकर!

    पर यह ग़नीमत है कि

    हर आँके-बाँके चेहरे के पीछे

    रख दी है उसने

    मेकअप की कूँची भी!''

    ''मेकअप की कूँची?''

    पहली दफ़ा जो भी सुनता, वह चौंकता!

    ''हाँ, इसको और क्या कहें,

    कि कुछ तो हर आदमी में होता है ही

    प्यार करने लायक़,

    वो ही कर देता है

    सब मेकअप''

    हँसकर वह कहते...

    इन दिनों लेकिन वह कुछ भी नहीं बोलते,

    रेडियो के आगे

    सर झुकाकर बैठे

    चुपचाप सुनते रहते हैं

    फ़सादात के क़िस्से

    और बुदबुदाते हैं कभी-कभी बस इतना—

    ''मेकअप नहीं होती इतिहास की भूलें

    मेकअप नहीं होती दिल की लगी।

    इंदिरा गांधी का मेकअप उन्होंने किया था कभी!

    इस बात की झुरझुरी उनमें

    आपातकाल घोषित होने के दिन तक बनी रही!

    उस समय भी कुछ महीने

    लग गया था गला बखोर

    कुछ बोला जाए,

    बस टुकुर-टुकुर ताकें!

    कई महीने बाद एक रोज़ वे बुदबुदाए—

    ये ही सब जब होना था हिंदुस्ताँ में भी,

    बेकार ही छोड़ी अपनी रावलपिंडी!''

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनामिका
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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