वामांगी

wamangi

अरुण कोलटकर

अरुण कोलटकर

वामांगी

अरुण कोलटकर

और अधिकअरुण कोलटकर

    मंदिर में गया था इस बीच

    दिखा नहीं वहाँ विठ्ठल

    रखमाई के बग़ल से

    सिर्फ़ एक ईंट

    मैंने कहा, चलो

    रखमाई तो रखमाई

    किसी के तो पाँव पर

    रखना है सिर

    पाँव पर रखा हुआ

    सिर हटा लिया

    अपने को ही बाद में कभी

    काम आएगा इसलिए

    और जाते-जाते यूँ ही

    रखमाई से कहा

    विट्ठू कहाँ गया

    नज़र नहीं आता

    रखमाई ने कहा

    कहाँ गया यानी

    खड़ा नहीं क्या मेरे

    दाहिने ओर

    मैंने फिर से देखा

    ख़ातिरी के लिए

    और कहा, वहाँ तो

    कोई भी नहीं

    कहने लगी सामने

    देखते-देखते ज़िंदगी निकल गई

    बाजू का मुझे थोड़ा

    कम ही दिखता है

    पत्थर-सी हो गई

    अकड़ गई गर्दन

    ज़रा भी नहीं हिलती

    इधर या उधर

    कब आता है कब जाता है

    कहाँ जाता है क्या करता है

    मुझे कुछ ज़रा भी

    पता नहीं

    कंधे से कंधा

    सदा बग़ल में है विट्ठू

    सोच कर बावली मैं

    खड़ी हूँ

    असाढ़-कातिक ग्यारस पर

    इतने लोग आते हैं सदा

    पर मुझे कभी किसी ने

    बताया ही नहीं

    आज अचानक मुझ पर

    हहरा कर आया

    अट्ठाईस युगों का

    एकाकीपन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 38)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवि के साथ चंद्रकांत पाटील एवं विष्णु खरे
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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