चिनगारी फूटी है

chingari phuti hai

वा. रा. कांत

वा. रा. कांत

चिनगारी फूटी है

वा. रा. कांत

और अधिकवा. रा. कांत

    मिट्टी के मन में चिनगारी फूटी है

    आज अँधेरे के महाद्वीप में

    एक ज्योति चमकी है

    उस मशाल में

    सर्पमणियों की रक्तिम आभा

    फूतकार कर रही है;

    सिंह की आँखों में झलकने वाली

    मृत्यु के बिंदु चमकते हैं;

    लेकिन हवा थोड़ा ठहर जा

    इस तरह अंधी बन के मत भाग।

    शायद इस ज्योति से जल उठें अनेक दीप

    साँभर के सींगों में भड़क उठें लपटें।

    ठहर जा हवा

    मिट्टी के मन में चिनगारी फूटी है।

    ज्वालामुखी की क्रोड़ में

    सूर्य के वीर्य से जन्मा है यह देश

    अँधेरे जंगलों में, सदियों के कुहरे में

    झुककर कौन पढ़ता है वहाँ

    रहस्य-भरे भयावने पिरामिडों की

    तिरछी-पाषाणी बारहखड़ी?

    स्फिंक्स की पलकहीन आँखों में

    कौन खोज रहा है अर्थ

    घुटी हुई साँसों और बहते हुए ख़ून का?

    ज़ंजीरों से घसीटे गए

    गुलामों के, रेत पर उभरे हुए पग-चिह्न

    प्रतिशोध की लय से मचल उठे हैं।

    शायद

    मिट्टी के मन में चिनगारी फूटी है।

    बाँझ मरुस्थल की रेत

    गर्भवती हुई है

    घनघोर जंगल में लगी हुई

    आग के चारों ओर

    मस्ती में नाच रहे हैं

    अर्धनग्न काले अंग

    जवानी के काले संगमरमरी टुकड़े

    वर्षा की रात्रि में

    आषाढ़ी मेघों के काजल स्वप्न

    घास के लहरदार घाँघरे

    घूम रहे हैं गोल-गोल।

    क्षितिज की ढोलक ठनक रही है।

    उनकी शंख-ध्वनियों में

    सागर की गर्जन है

    खेतों में बिखरा है

    सूर्य का तेजस्वी प्रकाश

    और उस अग्नि में उग आई है

    एक मानवीय आँख

    काली-सफ़ेद खोपड़ी की तरह

    पानी से भरी हुई

    मिट्टी के मन में चिनगारी फूटी है।

    मुहम्मद साहब का ऊँट

    तलवारों के पत्ते चबाता हुआ इधर आया था

    मगर प्यासा ही लौट गया।

    उसकी पीठ पर से उड़े हुए

    क़ुरान के फटे पन्ने

    सागा के जंगल ने खा डाले।

    क्राइस्ट का मेमना भी इधर आया

    चरता हुआ

    मगर तराजू और तलवार के झगड़ों में

    अपना क्रूस छोड़कर चला गया।

    गंगा के हाथ

    और हिमालय की छाया लेकर

    एक हड्डियों का ढाँचा भी इधर आया

    और इस मिट्टी में

    पहली ज्योति उसी ने जलाई

    सत्य की शांत ज्योति सत्याग्रही।

    (गरम रेत की ज्वालाएँ

    हिमालय के मन में झलक उठीं)

    गंगा-जमना के तीर पर

    दक्षिण महासागर के तट पर

    वही प्रकाश फैला है।

    मिट्टी के मन में चिनगारी फूटी है

    सात समुंदर पार

    दर्पणी इस्पाती शब्दों के

    गगनभेदी महलों में

    वाद-विवादों के पटाखे छोड़ने वाले

    आतिशबाज़ खिलाड़ियो,

    इस मिट्टी की तरफ़ देखो—

    वाशिंगटन में बाहर खींची गई

    आज़ादी की तलवार का पानी

    यहीं चढ़ेगा कसौटी पर

    लिंकन द्वारा ली गई समता की शपथ

    कांगो के तीर पर होगी सार्थक।

    महात्माजी की घायल सांध्य प्रार्थना

    प्राणों से भी विराट् होकर

    इसी मिट्टी में से

    सूर्य-मंडल का भेदन करेगी

    मिट्टी के मन में चिनगारी फूटी है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 151)
    • रचनाकार : वा.रा.कांत
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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