एक नया फूल ढूँढ़ता हूँ रोज़

ek naya phool DhunDhata hoon roz

मनोज कुमार पांडेय

मनोज कुमार पांडेय

एक नया फूल ढूँढ़ता हूँ रोज़

मनोज कुमार पांडेय

और अधिकमनोज कुमार पांडेय

    एक नया फूल ढूँढ़ता हूँ रोज़

    कि देख सकूँ हर दिन

    एक नए फूल की तरह खिला तुम्हारा चेहरा

    एक नई बात खोजता हूँ रोज़

    कि वह तुम्हें नई लगे

    साथ में मेरा भी जादू रहे बरक़रार

    तुम्हारी रुचियों के बारे में तुमसे ज़्यादा सोचता हूँ

    क्या पढ़ रही हो तुम इन दिनों

    चाहता हूँ तुमसे पहले उसे पढ़ डालूँ

    यही बहाना सही

    पर तुमसे बातें कर पाऊँ ख़ूब-ख़ूब

    तुम्हारी पसंद के रंग के पहनता हूँ कपड़े

    कि देखो तुम मुझे उन रंगों के बहाने ही

    मोबाइल में है तुम्हारी पसंद की रिंगटोन

    तुम्हारी पसंद के गीत गुनगुनाता हूँ

    क्या करूँ तब भी नहीं बचा पा रहा अपना प्यार

    मुझे याद नहीं कि तुमसे पहले

    कौन-से गीत गुनगुनाता था मैं

    मेरा पसंदीदा रंग कौन-सा है

    कौन-सी किताबें हैं जो अपने लिए चुनी थीं मैंने

    कि कौन-सा है मेरा पसंदीदा फूल

    जिसकी जगह किसी जरबेरा ने ली आकर

    हर पल गुम हो रहा हूँ तुममें

    और तुम्हें खोता जा रहा हूँ

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनोज कुमार पांडेय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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