घर की ओर

ghar ki or

बालमणि अम्मा

बालमणि अम्मा

घर की ओर

बालमणि अम्मा

और अधिकबालमणि अम्मा

    दरवाज़ा खोल मेरे घर के भीतर का

    प्रवाहित हो, हे नभ के प्रकाश!

    दिव्य मार्ग से पूरी तरह शोभित हो

    चमकीले मेघों के बीच-बीच में

    तेरे प्रवाह की लहरों में खेलती, धरती पर

    उतरने वाली दिवस देवियाँ भी आएँ

    अपने सुनहरे अंचल को लहराते

    मेरी बाड़ी के अंदर जाएँ।

    पूजा के फूल बिखेरे हैं, तूने इस आँगन में

    खम्बों को पवित्र हल्दी से पोत दिया,

    इस धूल से सटी पड़ी दरवाज़े की सीढ़ी पर

    प्रार्थना के लिए आसन तूने बिछाया,

    जाओ, जाओ, व्यग्रता से खोलती हूँ मैं

    पहले से बंद दरवाज़ों को

    बाहर की बैठक में, जहाँ सजाकर रखी गई हैं

    कई विशेष अद्भुत वस्तुएँ,

    शयनागार में, जहाँ मंद-मंद रोशनी में

    लहराते सपने आते हैं।

    तहखाने में, जहाँ पैतृक संपत्ति का

    ढेर लगा है अंधकार में,

    हे स्वर्गीय तेजस्वी निर्झर तू स्वच्छंदता से

    चू-चू कर फैल जा उन सब में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नैवेद्य (निवेद्यम्) (पृष्ठ 67)
    • रचनाकार : बालमणि अम्मा
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1996

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