मैं और मेरा पिट्टू

main aur mera pittu

भारतभूषण अग्रवाल

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मैं और मेरा पिट्टू

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    देह से अकेला होकर भी

    मैं दो हूँ,

    मेरे पेट में पिट्टू है।

    जेब में दफ़्तर में

    साहब की घंटी पर उठता-बैठता हूँ,

    मेरा पिट्टू

    नदी किनारे वंशी बजाता रहता है!

    जब मेरी ‘नोटिंग' कट-कूट कर 'रि-टाइप' होती है

    तब साप्ताहिक के मुख-पृष्ठ पर

    मेरे पिट्टू की तस्वीर छपती है!

    शाम को जब मैं

    बस के फुट-बोर्ड पर टँगा-टँगा घर आता हूँ

    तब मेरा पिट्टू

    चाँदनी की बाँहों में बाँहें डाले

    मुग़ल गार्डन में टहलता रहता है!

    और जब मैं

    बच्चे की दवा के लिए

    ‘आउटडोर वार्ड’ की ‘क्यू' में खड़ा रहता हूँ

    तब मेरा पिट्टू

    कवि-सम्मेलन के मंच पर पुष्प-मालाएँ पहनता होता है।

    इन सरगर्मियों से तंग आकर

    मैं अपने पिट्टू से कहता हूँ :

    भई, यह ठीक नहीं

    एक म्यान में दो तलवारें नहीं रहतीं,

    तो मेरा पिट्टू हँस कर कहता है :

    पर एक जेब में दो क़लमें तो सभी रखते हैं!

    तब मैं झल्ला कर आस्तीनें चढ़ा

    अपने पिट्टू को ललकारता हूँ—

    तो फिर जा, भाग जा, मेरा पिंड छोड़,

    मात्र क़लम बन कर रह!

    और यह सुन कर वह चुपके से

    मेरे सामने गीता की कॉपी रख देता है!

    और जब मैं

    हिम्मत बाँध कर ,

    आँखें मींच कर मुट्ठियाँ भींच कर

    तय करता हूँ कि अपनी देह उसी को दे दूँगा।

    तब मेरा पिट्टू

    मुझे झकझोर कर

    ‘ऐफ़िशिएंसी बार' की याद दिला देता है!

    एक दीखने वाली मेरी इस देह में

    दो ‘मैं’ हैं।

    एक मैं

    और एक मेरा पिट्टू।

    मैं तो, ख़ैर, मामूली-सा क्लर्क हूँ,

    पर मेरा पिट्टू?

    वह जीनियस है!

    स्रोत :
    • पुस्तक : तार सप्तक (पृष्ठ 102)
    • संपादक : अज्ञेय
    • रचनाकार : भारतभूषण अग्रवाल
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2011

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