मैं अकेला नहीं था

main akela nahin tha

सोमप्रभ

सोमप्रभ

मैं अकेला नहीं था

सोमप्रभ

और अधिकसोमप्रभ

    दिन तो दिन

    रात इतनी रोशनी से रहा भरा

    सुई भी याद-गुम में जो दिखने का दावा किया जा सकता है

    चमक इतनी है हर तरफ़

    जैसे हर चीज़ माँज दी गई हो

    त्वचा के भीतर की खरोंच तक

    जो ऊपर से लीप दी गई हो

    तमाम क़िस्म के सुंदर बनाने के मलहमों से

    अजीब है पर रिवाज है

    कि त्वचा की रंध्र में

    भरा जा रहा है सुंगधित मलहम

    कि दुख दिखाने के लिए नहीं है

    हँसना और हँसते रहना एक अंतहीन प्रदर्शन है

    मैं जिस उम्र में हूँ

    उसमें सबसे ज़्यादा दर्ज कर पाता हूँ

    वह मेरी निराशा है

    कि यह मेरी गिनने की भी नाकामी

    घटनाएँ इतनी हैं

    कि वह दुनिया के कुल आदमियों के हाथ और पैर की उँगलियों पर भी नहीं गिनी जा सकतीं

    कि मैं इतने बड़े संसार में चंद चीज़ें जान पाता हूँ

    मेरी बेरोज़गारी मेरे जीवन की तरह खिंची चली जाती है

    प्रेम की इच्छा तारे की तरह डूब गई है

    मेरा चेहरे फोड़े की तरह दिखता है

    मवाद से भरा

    पर मैं उसमें मलहम नहीं भर सकता हूँ

    मैं अकेला नहीं हूँ

    बहुत-से हैं मेरी तरह

    जिनके पास एक ही विकल्प है

    कि हम अपनी देह के भीतर चले जाएँ

    और नींद में जागते रहें

    रोशनी के उस विशाल वृत्त से जिसमें हम क़ैद हैं

    तितलियों का एक झुंड अपने पंखों का रंग खोते हुए उड़ा जा रहा है

    घोसले वृक्षों पर निरर्थक लटके हुए हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सोमप्रभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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