पटना का गांधी मैदान

patna ka gandhi maidan

नित्यानंद गायेन

नित्यानंद गायेन

पटना का गांधी मैदान

नित्यानंद गायेन

और अधिकनित्यानंद गायेन

    पटना के गांधी मैदान में

    हमने फिर देखा

    मादरे-हिंद की बेटी को चरते हुए

    वहीं एक कोने में

    विशालकाय मूर्ति के रूप में खड़े होकर

    ‘बापू’ संबोधित कर रहे हैं

    चंपारण के नील मज़दूरों को

    उनके अधिकारों के बारे में बता रहे हैं

    कवि राजकिशोर राजन मुझे बता रहे हैं

    कि इस मैदान के उस पार

    बहे जा रही है गंगा

    और मैंने कहा तभी यमुना किनारे की रेत को

    श्री-श्री बाबा के विशाल तंबू के लिए

    छोड़कर यहाँ घास चरने गई है

    बाबा नागार्जुन की मादरे-हिंद की बेटी!

    चलते-चलते हम पहुँच गए

    गांधी प्रतिमा के नीचे

    वहाँ सरकारी नियंत्रण में

    सामूहिक विवाह का आयोजन था

    भोजपुरी के अश्लील गीतों पर

    सभ्य लोग ठुमके लगा रहे थे

    गांधी ख़ामोश थे मूर्ति बनकर

    मैंने सोचा अपनी एक कविता सुनाऊँ बापू को

    पर मूर्तिकार ने उनके कान में छेद नहीं बनाया था

    तभी बापू उस मैदान पर यूँ ही खड़े हैं दशकों से

    ख़ामोश होकर।

    कवि शहंशाह आलम ने बताया

    क्या देखते हैं वे अपनी खिड़की से रोज़ सुबह

    और कहीं दूर से कवि धीरज कुमार को मेरी फ़िक्र हो रही थी

    जबकि कोई कसर नहीं छोड़ी थी उन्होंने मेहमान नवाज़ी में

    इसे मैं अपनों की फ़िक्र कहता हूँ

    नई धारा ने मुझे गले से लगा लिया

    पाटलीपुत्र के आधुनिक नगर में

    हमने आचार्य चाणक्य पर कोई बात नहीं की

    वैसे भी आजकल कौन करता है

    ख़तरों पर चर्चा!

    शराब पर प्रतिबंध है यहाँ

    इसकी जानकारी गांधी जी को है या नहीं

    कह नहीं सकता पक्के तौर पर

    हमने नीबू-चाय पी

    पाटलीपुत्र पटना हो गया है

    राजेंद्रबाबू के नाम पर बड़ा रेलवे स्टेशन बन गया

    पर कोई बदलाव नहीं पाया मैंने

    जातिवाद पर वहाँ

    बुद्ध की कुछ अस्थियाँ दफ़न हैं

    पटना जंक्शन के सामने

    किंतु विशाल हनुमान मंदिर पर ही ज़्यादा भीड़ रहती है

    पता नहीं कैसा लगता होगा बुद्ध को

    यह देखकर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नित्यानंद गायेन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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