पागल के लिए लोरी

pagal ke liye lori

अनाम कवि

अनाम कवि

पागल के लिए लोरी

अनाम कवि

और अधिकअनाम कवि

    हमने ही छीन लिए तुम्हारे सपने

    हमने ही तुम्हारे स्मृति-चित्रों पर उड़ेल दी स्याही

    हमने ही छोड़ दिया तुम्हें कुत्तों और सुअरों के बीच

    घूरे में तलाशने भोजन

    हमारी निष्फल प्रार्थनाएँ, तुम्हें लौटा नहीं पाईं

    खाई के मुहाने से

    तुम देखते हो दुनिया अजब आँखों से

    जहाँ बची नहीं तुम्हारी रोटी

    हर वक़्त तुम्हारे पेट में सुलगती रहती है भूख

    खाने की तलाश में हर वक़्त

    भटकते रहते हो आवारा-पशु की तरह

    तुम्हें याद रह गए हैं, खाने और जूठन के ठिकाने

    तुम्हें याद रह गए हैं, बहते नल

    तुम्हारे अधनंगे जिस्म से लटकते चीथड़े

    गलियाँ बुहारते रहते हैं

    स्मृति की खिड़की पर ठिठकी

    तुम्हारी आँखें हर वक़्त डूबी रहती हैं गहन विचारों में

    इस बारिश ने तुम्हें वीरान और उजड़े मकानों के कोनों तक

    धकेल दिया है

    आवारा-पशुओं के साथ तुम छिपाते फिरते हो सिर

    भिखारियों की देखा-देखी

    तुम सीख जाते हो फैलाना हाथ

    जबकि सिक्के अब तुम्हारी ज़रूरत नहीं रह गए,

    आज की रात, पक्षियों के साथ-साथ

    मरेंगे अनेक बेघर सड़कों पर

    आज की रात तुम्हें शरण देंगे घूरे और कचराघर

    कहीं जलती आग शरण देगी अपने निकट

    जीवन से मिली इतनी ऊष्मा के सहारे

    सो जा अपनी भूख को भूलकर ज़रा देर

    सो जा अपनी देह के घर में

    धरती पर तेरे होने या होने का

    क्या बचा है अर्थ?

    यह रहस्य तुझे हर बार बचा लेने वाली

    चीज़ें जानती हैं

    उन्हीं की करुणा की छाँव में सो जा

    ईश्वर ज़रा देर सुस्ताने

    डोलता है तेरे निकट होकर आश्वस्त

    कि तू उसे पहचानता नहीं

    और तेरे कहे को कोई मानेगा नहीं

    इसी भरम की धूप-छाँव में सो जा

    क्योंकि सूरज के निकलने को तू जानता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक अनाम कवि की कविताएँ (पृष्ठ 124)
    • संपादक : दूधनाथ सिंह
    • रचनाकार : अनाम कवि
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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