लेकिन तुम हो कि मुक़दमा लिखा देती हो

lekin tum ho ki muqadma likha deti ho

व्योमेश शुक्ल

व्योमेश शुक्ल

लेकिन तुम हो कि मुक़दमा लिखा देती हो

व्योमेश शुक्ल

और अधिकव्योमेश शुक्ल

    तुम शब्बर चाचा के घर की बग़ल में भी रह सकती थी

    तुम गुलिस्ताँ प्राइमरी स्कूल में पढ़ भी सकती थी

    तुम्हारे अब्बू शहनाई भी बजा सकते थे

    लेकिन बासठ की उमर में तुम उठती हो और वर्सोवा पुलिस थाने जाकर

    अपने इकहत्तर साल के पति नेताजी सालंके के ख़िलाफ़ उत्पीड़न का मुक़दमा लिखा देती हो

    तुम्हारे साथ बदसुलूकी हुई है

    तुम्हें थोड़ा आराम कर लेना चाहिए

    तुम जो कर सकती थी कर आई हो

    और ये दुबली-पतली ख़बर देश में फैल भी गई है

    फ़्लैट का दरवाज़ा भीतर से बंद कर लो

    थोड़ी देर में आएगा दिनेश ठाकुर हाथ में रजनीगंधा के फूल लिए

    या अमोल पालेकर भी सकता है या मैं भी सकता हूँ

    कोई कोई आएगा

    उसके दरवाज़ा खटखटाते ही फ़िल्म शुरू होती है

    साठ के अंत की फ़िल्म सत्तर के शुरू की फ़िल्म

    शहर आने की फ़िल्म

    जेल जाने की फ़िल्म

    बहुत ज़्यादा लोगों से कम लोगों की फ़िल्म

    पब्लिक ट्रांसपोर्ट की फ़िल्म

    या पब्लिक सेक्टर की फ़िल्म शुरू होती है एक फ़्लैट का दरवाज़ा खटखटाने से

    लेकिन मेरे और तुम्हारे बीच

    सिर्फ़ दरवाज़े भर की दूरी नहीं है

    बहुत से ज़माने हैं बहुत से लोग

    विद्याचरण शुक्ल हैं और बी. आर. चोपड़ा और प्रकाश मेहरा हैं और

    मनमोहन देसाई हैं और आनंद बख्शी हैं और ठाँय-ठाँय और ढिशुम-ढिशुम

    और ढाँ... है और घटिया फ़िल्में हैं और अत्यंत घटिया राजनीति है और

    आपातकाल है

    दरअसल गिरावट के अंतहीन मुक़ाबले चल रहे हैं मेरे और तुम्हारे बीच की जगह में

    और तुम हो कि मुक़दमा लिखा देती हो

    मैं जानना चाहता हूँ कि इस समय तुम क्या कर रही होगी क्या कर रही

    होगी तुम हिंदी फ़िल्मों की एक गुमनाम और मीडियॉकर अभिनेत्री तुम

    परवीन बॉबी या जीनत अमान भी तो हो सकती थी तुम मणि कौल की

    सिद्धेश्वरी में विद्याधारी भी बन सकती थी तुम मन्नू भंडारी भी हो सकती थी

    व्यास सम्मान ग्रहण करती हुई तुम मेरी नानी भी हो सकती थी बेटी हो

    सकती थी तुम वह बहन हो सकती थी जिसकी शादी तुम्हारे अस्तित्व की

    तरह ढहा दी गई थी एक दिन मेरी बीवी हो सकती थी तुम

    मेरी माँ साठ साल की हैं और तुम बासठ की

    मेरी माँ हो सकती थी तुम

    मेरी माँ हो सकती हो तुम

    अम्मा...

    यहीं बनता है एक मानवीय संबंध

    मैं इसे दर्ज करता हूँ

    और अपने पिता से तुम्हारी बात पक्की करता हूँ

    अगर तुम्हें पसंद हो यह सब तभी

    लेकिन तुम हो कि मुक़दमा लिखा देती हो

    स्रोत :
    • पुस्तक : फिर भी कुछ लोग (पृष्ठ 102)
    • रचनाकार : व्योमेश शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2009

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