जननायक हूँ मैं!

jannayak hoon main!

एन.पी. सिंह

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जननायक हूँ मैं!

एन.पी. सिंह

और अधिकएन.पी. सिंह

    मैं कहता रहा,

    तुम सुनते रहे,

    मैं बोलता गया,

    तुम मानते गए,

    जब तुम कहने लगे,

    मैंने अनसुना कर दिया।

    मैंने कहा बदल दूँगा व्यवस्था,

    जला दूँगा भ्रष्टाचार अव्यवस्था,

    और तुमने विश्वास कर लिया;

    मैंने कहा विकास का हूँ अग्रदूत,

    आतंक का विनाशक शांतिदूत,

    आमूल-चूल परिवर्तन का क्रांतिदूत,

    और तुमने यक़ीन कर लिया।

    मैंने कहा मेरा पाथेय है सिद्धांत,

    फ़रिश्ता हूँ जीवंत,

    तुम्हारी लिखने आया हूँ तक़दीर

    और तुमने मान लिया।

    मैंने कहा तुम्हारा ख़ुदा हूँ

    बंदगी करो झुककर,

    और तुमने सजदा कर लिया।

    मैंने बाँहें क्या उठाई हवा में,

    तुम्हें लगा जैसे बरकतें बरस रही,

    मैंने शब्दों की गर्जना भर की,

    तुमने मान लिया योद्धा।

    मैंने हथेली पर हाथ क्या रखा,

    तुमने बौछार कर दी करतल ध्वनि की,

    मैंने अभिनय पौरुषेय का क्या किया,

    तुम दीवानगी में मदहोश हो गए।

    मैंने कहा परिवर्तन रहा है, झूमो!

    तुमने नटराज नृत्य को भी बौना कर दिया,

    पर तुम भूल गए जाति-धर्म की अफ़ीम,

    जिस पर तुमने मुझे पसंद किया,

    और मुस्कुराते हुए थामा रुपयों का बंद लिफ़ाफ़ा,

    तुमने पूछा एक बार भी मुझसे,

    यह आया कहाँ से है, देवदूत?

    मैं सिद्धांतवादी हूँ,

    जिसका मंत्र है मेरा अस्तित्ववाद,

    और नाभि है अवसरवाद,

    मैं हूँ सौदागार तुम्हारे वोट का,

    निखारता हूँ नितांत ‘निज’,

    तुम कहते हो मैंने धोखा दिया,

    पर मैंने स्वधर्म निभाया।

    मैं आशवस्त हूँ कि फिर बनोगे शिकार

    मेरे शब्द-जाल का,

    मैं फिर कहूँगा, तुम फिर सुनोगे

    और जब तुम भूल से

    पूछोगे कोई सवाल,

    मैं मुस्कुरा दूँगा बहरा बनकर।

    तुम सलाम करोगे

    मेरी नेतृत्व कला को,

    मैं राज करता रहूँगा चिरंतन—

    रूप, गंध वस्त्र बदलकर,

    संविधान संवहन कापहनकर चोला,

    क्योंकि तुम्हारा जननायक हूँ मैं!

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द! कुछ कहे-अनकहे से... (पृष्ठ 97)
    • रचनाकार : एन.पी. सिंह
    • प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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