हमारे निरामिष घर में

hamare niramish ghar mein

कुशाग्र अद्वैत

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हमारे निरामिष घर में

कुशाग्र अद्वैत

और अधिककुशाग्र अद्वैत

    हमारे निरामिष घर में

    एक तोता होता था,

    छज्जे पर कबूतर का

    परिवार रहता था

    और उनके यहाँ

    होता था एक सफ़ेद ख़रगोश

    जिसको एक एकादश

    खा गई थी कोई बिल्ली

    बाद उसके, जाने उन्हें क्या सूझा

    वे लेकर चले आए

    एक सितकेशिनी रेशमी बिल्ली

    सर्दियों की दुपहरी जो छत फाँद

    हमारी तरफ़ अक्सर जाती थी

    या कहिए उनकी छुटकी बिटिया

    उन दिनों जिसने

    बी. कॉम का पर्चा भरा था,

    उन दिनों जो

    हाथ बुना मैरून-बैंजनी कार्डिगन पहनती थी,

    उन दिनों जिसकी

    चाची से बिल्कुल नहीं बनती थी

    वही उसे गोद में उठाकर लेती आती थी

    फिर हमारी छत पर बैठ

    मुमफलियाँ (मूँगफली) खाती,

    मटर छीलती, आँख मींचती

    दीदी से घंटों बतियाती थी

    गुड्डी (पतंग) खजूर के गाछ तक

    पहुँचने पर

    थोड़ी देर ढीलने देने के बदले

    मुझे छुरैया देती थी,

    कभी भैया की स्टडी में जा

    करती कोई ऐसा मज़ाक़

    कि भैया कम,

    वह ज़्यादा हँसती थी

    यही दो हज़ार आठ की मई थी

    जब गर्मियों की छुट्टियाँ हुई थीं

    दीदी को पीलिया हुआ था

    (या शायद कुछ और

    जो मैं अभी भूल रहा हूँ)

    मैं खेलकर आया था

    पसीने से लदबद,

    वह दीदी के पास बैठे

    बस रोए जा रही थी

    मुझे याद है

    मैं उस तरफ़ नहीं गया था एहतियातन

    कि किसी को भी रोता देख

    मेरी आँखें भर आती थीं

    उस शाम उसके रोने की तमाम वजहें हो सकती हैं

    जिनके बारे में उसके सिवा पूरे मोहल्ले में

    कोई भी ठीक-ठीक नहीं जानता था

    हालाँकि अम्मा और चाची को बहुत बाद तक लगता रहा

    कि दीदी को सब कुछ पता रहा होगा

    दीदी ने वैसे कभी कुछ नहीं उगला

    ही उसकी कोई बात ही करती

    हाँ, सर्दियों में अक्सर हाँ

    उसकी बिल्ली को ज़रूर याद करती

    और रोने की ही बात क्यों की जाए

    वजहें तो तमाम हो सकती हैं

    उस शाम के बाद से ही

    बिल्ली संग उसके लापता होने की भी

    जहाँ तक याद है

    अपने किसी दूर के रिश्तेदार के साथ

    चाचा ने महीनों ढूँढ़ा था उसको

    मोहल्ले वाले भी कम दुःखी थे

    इस ही दुःख में उन्होंने

    एक लड़के को बहुत पीटा भी था

    उसकी कोई ख़बर मिली हो कभी

    ऐसा तो याद नहीं आता

    अम्मा ने उसकी बाबत कभी कुछ नहीं बताया

    जैसे, पिछले हफ़्ते बता रही थी

    सत्यनारायण की कथा सुन लौटने पर

    ―वे लोग फिर से लेते आए हैं

    एक सफ़ेद बिल्ली!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुशाग्र अद्वैत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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