अपराजिता के चार फूल

aprajita ke chaar phool

कुशाग्र अद्वैत

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अपराजिता के चार फूल

कुशाग्र अद्वैत

और अधिककुशाग्र अद्वैत

    तुम्हारा

    कंबल नीला,

    तकिए नीले,

    पर्दे-वर्दे भी

    सब नीले,

    बुकशेल्फ़

    नीला,

    स्वेटर नीला,

    मफ़लर नीला,

    अलमारी नीली

    चप्पल नीली

    और,

    अब तो तुमने

    मनमानी करके

    ले लिए हैं

    जूते भी

    नीले ही

    अब

    सब कुछ जब

    नीला ही था

    तो,

    क्या ज़रूरत थी

    दीवारों पर

    नीले ही

    पेंट की?

    तुममें

    रत्ती भर

    समझ नहीं है

    कॉन्ट्रास्ट की!

    ***

    वो

    ऑलिव ग्रीन टी-शर्ट

    कितनी फबती थी

    तुम पर

    और,

    टैरकॉटा रेड वाली के तो

    कहने ही क्या

    पर,

    तुमको

    हर बार

    वह नीली वाली ही

    क्यों पहननी होती थी?

    ***

    मेरे बार-बार कहने पर

    जब सफ़ेद शर्ट पहनकर आते थे

    कफ़ में लगे होते थे

    नीली स्याही के दाग

    यह कैसा लाग!

    ***

    होली पर तो

    सबको लाल-गुलाल

    ही सूझता है

    परंतु,

    उस दिन भी

    लगे रहते थे तुम

    नील के ही कारोबार में

    ***

    मैंने

    उस दिन

    ग़ुस्से में पूछा था,

    What is this obsession with blue?

    जैसे, पहले से ही

    सोच रक्खा हो जवाब―

    बस कर रहे थे

    मेरे पूछने का इंतज़ार―

    कि मैं यह बोलूँ

    तो, तुम

    बोल दो वह

    कैसे तपाक से कहा था तुमने,

    Because, you came into my life, out of the blue.

    ***

    ख़ून सही,

    लाल स्याही से ही

    लिख देना था

    कितना अनरोमैंटिक

    लगता है,

    नारंगी डायरी से

    झाँकता

    नीली स्याही से

    लिखा

    प्रेमपत्र!

    ***

    तुम

    प्रकाश

    थे

    मेरे

    जीवन

    के

    अमूमन, प्रकाश

    विभाजित होता है―

    इंद्रधनुष में

    लेकिन,

    मेरे मन के

    प्रिज़्म पर

    चढ़ पाया है

    केवल

    तुम्हारा

    नीला रंग!

    ***

    एक घंटे, उन्नीस मिनट की

    ड्राइव के बाद

    काई लगे

    उस पत्थर पर

    बैठते ही

    तुमने रख दिए थे

    मेरी गोद में

    अपराजिता के चार फूल

    और, मैंने पूछा था,

    ये कहाँ मिल गए तुम्हें?

    हद करते हो...

    Who proposes with Bluebell vine?

    ***

    यह

    उदास

    और

    निष्क्रिय

    रंग :

    हमेशा से

    बनता रहा है

    यातना का बायस

    पिकासो ने

    गहरे अवसाद के दिनों में

    बनाई थी―

    नीली पेंटिंग्स

    अनैच्छिक ही,

    कितने कृषकों को

    जोत दिया था

    खेतों में,

    यह रंग

    उपजाने को

    इस शाही रंग से

    मैंने हमेशा की है―

    एक मीठी घृणा

    तुम्हारा जाना था

    और, मैंने

    नहीं धरे हैं

    इस नीले ग्रह पर

    अपने पाँव

    बाँहे फैलाकर

    नहीं ली है साँस

    इस नीले गगन के तले!

    ***

    शक्ति ने

    शिव के

    कंठ में ही

    रोक दिया था

    विष

    और वह

    नीला हो गया

    मैंने तो नहीं रोका

    कभी

    ख़ुद को

    तुम्हारे प्रेम में पड़ने से

    फिर मुझ पर

    क्यों हो रहा है

    नील का अतिक्रमण!

    ***

    सावन के अंधे को

    दिखता होगा

    हर तरफ़

    हरा ही हरा

    तुम्हारे प्रेम के

    अंधेपन में

    मेरी आँखों में,

    रोम-रोम में,

    नफ़स नफ़स में

    उतर आया है

    नील

    कल ही

    एक दोस्त ने पूछा भी था,

    तुम्हें निमोनिया हुआ है क्या?

    ***

    यदि मुझे

    आत्महत्या करनी होगी

    जोधपुर चली जाऊँगी,

    किसी ऊँची पहाड़ी से

    कूद जाऊँगी

    पुलिसवालों को

    मिलेगी

    मेरी आधी-तीही लाश

    अगले रोज़

    अख़बार में छपेगा―

    किसी ने

    सोख लिया है

    इस शहर का नील,

    सूख गई सब झील!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुशाग्र अद्वैत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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