जंगल के जानवर और वर्तनी की ग़लतियाँ

jangal ke janwar aur wartani ki ghalatiyan

सौरभ राय

सौरभ राय

जंगल के जानवर और वर्तनी की ग़लतियाँ

सौरभ राय

और अधिकसौरभ राय

    मैंने गेंदा लिखना चाहा

    और गैंडा लिख दिया

    काफ़ी देर तक एक पूरी की पूरी कविता

    मेरी नाक में चुभती रही

    एक बार हिप्पी की जगह हिप्पो लिखा

    की-बोर्ड की ग़लती थी कि 'आई' 'ओ' के इतने पास था

    वैसे मैं हिप्पु भी लिख सकता था

    मगर हिप्पो लिखा

    फिर उस दिन मैंने हिप्पो के नथुनों से

    धुआँ निकलते देखा

    पुराने रॉक गीतों पर उसे मटकाते देखा कमर

    उस दिन मालूम पड़ा

    कि हिप्पो कितना शांतिप्रिय जानवर है

    घोड़ा को घड़ा लिख दिया

    इसे सुधारना आसान था

    मगर कई दिनों के बाद

    जब सचमुच का घोड़ा देखा

    कैसा सूख आया कंठ!

    यह कैसी ध्वनि थी दूर तक टापों की

    जो मेरी ग़लतियों से निकल

    घोड़े की प्यास बुझा रहा था

    फिर एक बार

    हंस को हँस पढ़ा

    और हँस पड़ा

    अक्सर हाथी को हाथ लिख देता

    अच्छा हुआ कि इस वजह से

    हाथों पर छड़ी पड़ी थी

    हाथी पर पड़ती तो शायद आँसू बन

    फूट जाता

    बस इसी तरह

    हाथी ने हाथों पर चलते हुए

    मेरी भाषा में प्रवेश किया था

    ताज्जुब यह

    कि मैं बटोर को बटेर

    बालू को भालू

    और बाग़ को बाघ की तरह ही

    देखता सोचता याद करता था

    मेरी कल्पना में इनके नाम ग़लत थे

    रूप नहीं

    अफ़सोस!

    अब नाम-वर्तनी मुसलसल हैं

    गूगल की दया से

    की-बोर्ड पर उँगलियाँ भी चलती हैं बराबर

    मगर ग़ायब हैं जंगलों और स्मृतियों से मेरे

    ये जानवर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सौरभ राय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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