कविता का छंद

kawita ka chhand

बद्री नारायण

बद्री नारायण

कविता का छंद

बद्री नारायण

और अधिकबद्री नारायण

    हालाँकि यहाँ के नागरिक तो सभ्य थे

    चौक पर टँगी दीवाल घड़ी भी सभ्य ढंग से चल रही थी

    समय से दफ़्तर खुलते थे और बंद होते थे

    नागरिक समितियाँ ओर ज़िला सरकारें ठीक ढंग से काम कर रही थीं

    किंतु यह अजब समाज था

    जहाँ नरसंहारों के सरकारी आदेश को

    मिल गई थी महाकाव्य के रूप में स्वीकृति

    और उसका रचयिता महाकवि के रूप में पूजित था

    कोई उसे छंद में, कोई चम्पू गद्य में

    कोई उसे सरस संगीत में कर रहा था आबद्ध

    कि सिद्ध हो नरमेध और काव्य का नाभिनाल संबंध

    कोई सिंजनी बजा रहा था

    कोई उस पर रच रहा था अनहद नाद

    सूर्य-रश्मियों से कविता का संगीत रहा था

    जो जितना हिंसात्मक था

    वह उतना ही काव्यात्मक था

    जो जितना क्रूर

    वह उतना ही काव्य-मद में चूर

    जो जितना छली था, वह उतना ही काव्य का बली था

    जनतंत्र के अपमान में था निहित काव्य का सम्मान

    जनता और राज्य का संबंध छंदोबद्ध

    मज़ाक़ में तब्दील होता गया था

    राग-रागिनियों में हो रहा था

    जनाकांक्षाओं पर कुठाराघात

    यह अजब समाज था

    जो जितना था व्यूह-रचना का गुणी

    वह उतना ही बड़ा काव्य-शिरोमणि

    धनी! काव्य-प्रतिभा का धनी!

    जो जितना दक्ष था विधानों का करने में अन्यायी रूपांतरण

    उसी ने सचमुच कर रखा था बाह्य का अभ्यंतरण

    और वही रसिक था

    कपट कुरंग से था जो जितना सुसज्जित

    वह उतना ही था जन-मन फल से मज्जित

    हालाँकि राज्य था, सरकार थी, लोक था, लोकाभियुक्त था

    जन था, जन अदालतें थीं

    किंतु यह अजब समाज था

    जहाँ काव्य-पद पर आसीन थे

    कापी, क्रूर, हत्यारे

    और नरमेध जहाँ राज्य की कविता का सबसे लोकप्रिय छंद था

    उसी अनुत्तरदायी, अंगभीर, आततायी व्यवहार में

    खड़े हुए थे कई गणराज्य

    जन समाजों का ख़ात्मा जिनका आख़िरी छंद था

    छंद! छंद! छंद!

    सब कुछ छंद था

    जो छंद नहीं था

    वह अघोषित रूप से सेंसर में बंद था

    आप उसे चिट्ठी लिखें श्रीमंत

    पता नहीं आपकी चिट्ठी उस तक पहुँच पाएगी या नहीं!

    स्रोत :
    • पुस्तक : खुदाई में हिंसा (पृष्ठ 150)
    • रचनाकार : बद्री नारायण
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2010

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