कवि मानबहादुर को याद करते हुए

kawi manabhadur ko yaad karte hue

केशव तिवारी

केशव तिवारी

कवि मानबहादुर को याद करते हुए

केशव तिवारी

और अधिककेशव तिवारी

     

    हत्या के इतने सालों बाद
    आज तुम पर क़लम उठाने की
    हुई जुर्रत

    हत्यारा कब का गोमती में नहा
    धपाप1
    धो चुका होगा अपने पाप

    बरवारी पुर गाँव का वह सीमांत घर
    जिसके बाद से शुरू हो जाता है
    सरपतों का जंगल

    मैं मिला था तुमसे एक गहराती शाम में
    बड़े बेटे अशोक की मृत्यु से आहत
    उसके बेटे को छाती से चिपकाए
    मिले थे तुम

    पिता की मृत्यु से टूटा था मैं भी
    तुम्हीं ने कहा था 
    कविता माँ है हर दुःख समेट लेगी अँचरे में
    चिपके रहो इससे

    आज सोच रहा हूँ हत्यारे के उठे फरसे के भय
    और उसके प्रतिकार के बीच
    कितने कवि लिख रहे हैं कविता

    मैं ख़ुद को क्या कहूँ, तुम्हें याद कर रहा हूँ
    या तुम्हारे दरवाज़े से शुरू
    सरपतों के जंगल में भटक रहा हूँ
    नंगे बदन बदहवास

    हत्यारे के फरसे और एक कवि की
    गर्दन के रिश्ते के बारे में सोचता।

    स्रोत :
    • रचनाकार : केशव तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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