कवि की शोकसभा

kawi ki shokasbha

अनुराग अनंत

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कवि की शोकसभा

अनुराग अनंत

और अधिकअनुराग अनंत

     

    मंगलेश डबराल की शोकसभा से लौटकर

    एक धुँधला-सा अँधेरा 
    एक अंधा-सा प्रकाश 
    मुझसे कहते हैं लिख लूँ मैं उन्हें 
    उन्हें अदद घर की ज़रूरत है 
    कविता का एक घर 
    जिसमें रहेंगे वे 
    एक धुँधला-सा अँधेरा 
    एक अंधा-सा प्रकाश 

    जिन कविताओं को पढ़कर
    मन थोड़ा-सा भारी 
    आँख थोड़ी-सी नम 
    और बेहूदा हँसी थोड़ी-सी कम हो जाए 
    ऐसी कविताओं में बसता है 
    कवि का मन 

    ऐसे मन का क्या करे कोई 
    ऐसे जीवन की अभिलाषा किसी को नहीं होती 
    कवि की मृत्यु के बाद 
    नहीं थमता कोई शहर 
    कोई समय 

    उसकी शोकसभा में आते रहते हैं ग़ैरज़रूरी फ़ोन 
    पत्नियाँ मँगाती रहती हैं सब्ज़ियाँ
    सहेजती रहती हैं एक किलो दाल ले आने को 
    लोग मुँह में मुँह दिए किसी कवि की करते रहते हैं बुराई 
    और मोटर गैराज में बनती रहती हैं बिगड़ी हुई गाड़ियाँ
    कोठे पर सजी-सँवरी बैठी रहती हैं औरतें
    बाज़ारों में लड़कियों की देह तौलती रहती हैं निगाहें 
    तानाशाह बढ़ाता रहता है दाढ़ी-मूँछ 
    पालतू जानवर हिलाते रहते हैं पूँछ
    कवि जिस भाषा में लिखता है 
    उस भाषा में दी जाती है माँ की गालियाँ
    कवि होता यदि अपनी शोकसभा में 
    तो अपने कवि होने पर
    और कवि की तरह मरने पर शोक करता? 
    या फिर इस शोक में भी कविता करता?

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुराग अनंत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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