कान! तुम ही कहो

kan! tum hi kaho

निर्मला तोदी

निर्मला तोदी

कान! तुम ही कहो

निर्मला तोदी

और अधिकनिर्मला तोदी

    आज मुझे अच्छा लग रहा है

    बहुत-बहुत अच्छा

    मैंने अपने कान से बातें कीं

    जिनसे आज तक कभी नहीं कीं

    मैंने कहा—

    सुनो, तुम मेरे हो

    आज मेरी सुनो

    दुनिया भर की सुनते हो

    आज मेरी सुनो

    जो मैं सुनना चाहती हूँ

    वही सुना करो

    सामने तरह-तरह के भोजन पड़े हों

    मेरा स्वाद वही खाता है

    जो खाना चाहता है

    अगर कुछ और खाना पड़ भी जाए तो

    दवा की तरह गटक जाता है

    मेरी नाक

    कचरे के ढेर से

    दूर रहना जानती है

    तुम क्यों कचरे का डब्बा बन बैठे हो

    सुन लेते हो सब कुछ

    तुम्हें मालूम है

    तुम्हारा सुना—मेरी कोशिकाओं में

    मेरी ग्रंथियों में जम जाता है

    फिर दुखता है

    बहुत दुखता है

    बार-बार दुखता है

    पिघल कर बह नहीं जाता

    आँसुओं के साथ भी नहीं

    मत पहुँचाया करो उसे भीतर तक

    प्लीज़...

    डरावना और वीभत्स देखकर

    आँखें बंद हो जाती हैं

    अपने आप

    क्या आग को उठा लेते हैं हाथ

    हाथों में

    फिर तुम क्यों सुन लेते हो सब कुछ

    जो बोलता है

    अपनी ज़ुबान से बोलता है

    अपनी बातें

    अपनी मनपसंद बातें

    अपनी सोच से बोलता है

    ठीक है ज़्यादातर बिना सोचे ही बोलता है

    तुम क्यों नहीं सिर्फ़ वही सुनते

    जो तुम्हें पसंद है

    सबका बोला सब कुछ क्यों सुन लेते हो

    कहो आज तुम ही कुछ कहो

    और मैं सुनूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निर्मला तोदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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