ऊपरवाला
उनकी हवस बढ़ी तो उन्होंने पत्थर गढ़
ऊपर वाले की जयकार की
ख़ुद लिखा और कहा
कि ऊपरवाले ने लिखा है
ख़ुद बोला और कहा
कि महान ऊपरवाला बोलता है
हमारी स्त्रियों को हथिया लिया और कहा
कि ऊपर वाले की सेवा में
हमारी ज़मीनें क़ब्ज़ा लीं और कहा
कि ऊपर वाले का न्याय है
भूखे की आख़िरी रोटी भी माँग ली और कहा
कि ऊपर वाले के लिए दो
जन्मने पर दुनिया में आने का कर वसूला और कहा
कि ऊपर वाला रास्ता देता है
मर जाने पर कफ़न पर उगाही की और कहा
कि ऊपर वाला मोक्ष देगा
वे जादूगरों की तरह
प्रारब्ध की कहानी सुनाकर
हाथ की सफ़ाई करते हुए
हमारे हक़ की रोटी अपनी थाली में सरकाते रहे
और हमने इस चमत्कार पर भी तालियाँ बजाईं
उन्होंने अनाज अपने गोदाम में भरे और भूख को दुधारू गाय
और उसकी लात को स्वर्ग की चाभी बता
हमारी चौखट पर बाँध दिया
ठग शक्ल से पहचान ही लिए जाएँ तो ठग कैसे
हम ज़हरख़ुरानी के शिकार की तरह
धुँधले चेहरों में ऊपर वाले को खोजते रहे
जो उनके अफ़ीम के खेतों में खड़ा बिजूका भर है
जो उनका ज़िरहबख़्तर है
जिस पर न्याय की हर तलवार टूट जाती है
और आख़िरकार
जो उनकी जूती है
उखड़ जाए तो कीलें ठुकवा दी जाती हैं
काटने लगे तो तेल पिला दिया जाता है
और काम न आए तो बदल दिया जाता है
हमारी गर्दन, उस पर उनकी जूती और उस जूती में उनके पाँव की पहेली में
ऊपर वाला कौन है यह बूझना इतना कठिन तो नहीं था।
- रचनाकार : कविता कादंबरी
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
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