एक बंगालन के गोदने में क़ैद है महाब्रह्मांड

ek bangalan ke godne mein qaid hai mahabrahmanD

जोशना बैनर्जी आडवानी

जोशना बैनर्जी आडवानी

एक बंगालन के गोदने में क़ैद है महाब्रह्मांड

जोशना बैनर्जी आडवानी

और अधिकजोशना बैनर्जी आडवानी

    एक महापृथ्वी की सुंदरता जमी हुई है बंगालन की कमर की धारियों में

    फूस के पीले में छिपी हैं बंगालन की योजनाएँ

    आकाश में छितरी हैं काँसे की झिर्रियों के साथ उसकी पीड़ाएँ

    बरगद पर बैठी पाखियाँ तीस्ता की व्यथा सुनाती हैं

    आम की लकड़ियाँ हवन-कुंड को स्वर्ग मान बैठी हैं

    खेत-पतवार जैसे सुसज्जित बैठक हो,

    नदियाँ जैसे कुँवारी कन्याओं की हथेलियों से निकला आशीर्वाद हो

    बनबत्तख़ों के जोड़ों के साथ बंगालन की धवलिमा पृथ्वी पर चंद्रिकोत्सव मनाती है

    संध्या की नारंगी छटा में बंगालन पका रही है इलिश, गा रही है बाउल, पसीने में सिंदूर नाक पर टपकता है

    पोखर में नहाती है तो चंद्रमा से भी गहरे उतरती है पानी में

    लाल साग, परवल, बत्तख़ के अंडे, सहजन

    एहतियात से रखती है सूती झोले में

    चलती है तो सब्ज़ी मंडी आड़ में चलती है

    नवयुवक थम जाते हैं

    मंदिर में माँ काली के समक्ष शंख फूँकती है,

    देवी के कान में फूँक देती है दिनचर्या

    रात में घिसती है पीतल के बासन

    करती है प्रेम, प्रेम करना बासन घिसने जितना सरल नहीं

    हाथ में त्रिशूल गुदा है, गोदने में क़ैद हैं शिव—परिवार समेत

    एक बंगालन के गोदने में क़ैद है महाब्रह्मांड

    स्रोत :
    • रचनाकार : जोशना बैनर्जी आडवानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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