झिनझिनी

jhinajhini

प्रेम रंजन अनिमेष

और अधिकप्रेम रंजन अनिमेष

    जब तक

    झिनझिनी से पैर पकड़े रहा मैं

    मेरी साइकिल बढ़ाकर

    ले गया कोई

    जब तक झिनझिनी रही मुझे

    कोई ले गया

    मेरे हाथ से घड़ी

    जितनी देर में

    जाती मेरी झिनझिनी

    मैंने उसे जाते देखा

    जो मेरा प्यार था

    बुलावा था कहीं

    समय पर पहुँचना था मुझे

    मगर क्या करता

    झिनझिनी थी

    भीड़ भरी सड़क पर अकेला मैं

    शायद किसी को मालूम नहीं

    इस तरह अकेला क्यों खड़ा

    क्यों नहीं

    किसी के साथ चल रहा

    क्यों किसी भागती बस से झूल नहीं रहा

    और जो जानने वाले

    मुझे नहीं

    मेरी चीज़ें ले गए

    मज़े से

    क्योंकि मैं रो-पुकार नहीं सकता था

    कि मुझे झिनझिनी थी

    और मैं उसकी मीठी पीड़ा से

    हॅंसने को मजबूर

    चलती सड़क के किनारे

    अधिक रुका नहीं जा सकता

    लेकिन क्या करूँ

    ठहरूँगा जब तक

    झिनझिनी है

    एक पाँव का जैसे पता नहीं चलता

    क़दम बढ़ाकर ज़मीन पर

    धरते लचक जाता

    कुछ देर

    इतनी ही देर की तो बात है

    कोई सवारी पर से

    हाथ हिलाता जा रहा

    उस हाथ हिला दूॅं

    वरना उसका सफ़र ख़राब हो जाएगा!

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रेम रंजन अनिमेष
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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