इन दिनों

in dinon

उमा शंकर चौधरी

और अधिकउमा शंकर चौधरी

    इन दिनों शरीर में कम होता जा रहा है नमक

    शरीर में कम होता जा रहा है लोहा भी

    इन दिनों कुछ दूर जाता हूँ और हाँफ कर बैठ जाता हूँ

    इन दिनों अपनी ही साँसों की आवाज़ मुझे सनाई देने लगी हैं

    इन दिनों कम होने लगी हैं बारिश में पानी की बूँदें

    कम होने लगी हैं सूरज की रोशनी में गरमाहट

    बच्चे बाहर खेलने जाते हैं

    और उदास होकर घर लौट आते हैं

    इन दिनों मैं ख़ुद भी अख़बार पढ़ने टी.वी. देखने से

    अपने को बचाने लगा हूँ

    इन दिनों सचमुच शरीर में कम होता जा रहा है नमक और लोहा भी

    इन दिनों धीरे-धीरे बच्चों की भूख मरने लगी है

    आँसुओं में नमक का खारापन बढ़ने लगा है

    लोगों ने अपने दुख-दर्द के बारे में

    बातें करनी कम कर दी हैं

    कम कर दिया हैं उन्होंने अब लोकतंत्र के बारे में सोचना

    इन दिनों सचमुच बहुत बढ़ गई है आदमी में तकलीफ़ सहने की क्षमता

    इन दिनों अपनी पाँच साल पुरानी तस्वीर से

    नहीं मिलता है अपना चेहरा

    नहीं पहचान पाते हैं हम उस तस्वीर में अपने ही बच्चे की हँसी

    और अपनी पत्नी के चेहरे की लाली

    इन दिनों हमारे चेहरे के स्वरूप ने ले लिया कोई और ही आकार

    हमें हमारे अपने ही पहचान पत्र से

    नहीं पहचान सकता है कोई

    इन दिनों चेहरा कैसा तो काला पड़ गया है

    कैसी तो हड्डियाँ निकल आई हैं बाहर

    इन दिनों सचमुच शरीर में कम होता जा रहा है नमक और लोहा भी

    इन दिनों मेरी कविता में बार-बार आने लगा है दुख

    बार-बार आने लगी है खीझ

    इस कविता में आती है एक बच्ची

    जो पूछती है मुझसे कि क्या हुआ है इन दिनों

    मैं देखता हूँ आसमान की ओर, समुद्र की ओर, हरी घास की ओर

    और दुहराता हूँ उस बच्ची का सवाल

    कि क्या हुआ है इन दिनों

    पर कहीं से कोई जवाब नहीं आता

    इन दिनों सचमुच कहीं से कोई जवाब नहीं आता

    कि कैसे हमारे ही हाथ से फिसलता जा रहा है हमारा लोकतंत्र इन दिनों!

    स्रोत :
    • रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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