हूँ तो

hoon to

शरद रंजन शरद

और अधिकशरद रंजन शरद

    जीते जी

    करूँ इतना ही

    सोते जगते

    सच के सपने देखूँ

    चलते फिरते

    सबके लिए सोचूँ

    दिशा दूँ बहते जल को

    लहू को रोकूँ

    गिरा पड़ा हो जो

    उठाकर सही जगह रख दूँ

    रोते को हसाऊँ

    भूले को मिलाऊँ

    काम जिनका रह गया

    नाम जिन्हें मिल सका

    उनकी कथा सुनाऊँ

    पाँवों और पहियों का

    उसी रेख पर चलना

    आँखों पर वैसा ही

    ख़ुद को देखने वाला चश्मा

    जिस्म का उसी तरह सँवरना

    दिल का बहकना

    मन का बार-बार मचल जाना

    रोज़ करना वही खेल

    बनना दुनिया का तमाशा

    जुटाना मजमा

    और ठग-ठगाकर चले जाना

    हूँ तो कुछ करूँ

    कि पड़े थोड़ा ख़लल

    ठहरी सहमी चेतना पर

    फेंकूँ कंकड़

    रस्साँकशी के द्वंद्व में

    डिगती मनुष्यता की ओर

    लगाऊँ अपना बल...

    स्रोत :
    • रचनाकार : शरद रंजन शरद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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