बूढ़ी औरत का एकालाप

buDhi aurat ka ekalap

रहमान राही

रहमान राही

बूढ़ी औरत का एकालाप

रहमान राही

और अधिकरहमान राही

    कितना छोटा है इंसान का जीवन पूर्णिमा की तरह सम्मोहक

    इस संसार में!

    कुछ पल ओस के

    कुछ गुलाब के

    इससे पहले कि हम अनिश्चित रास्ता पकड़ें

    क़ब्र का, और चिता किसी की दोस्त नहीं होती।

    जवानी आती है बचपन के बाद फिर उड़न-छू हो जाती है,

    और कितनी जल्दी चिड़चिड़ेपन की उम्र जाती है।

    कितना संक्षिप्त है हमारा जीवन मगर कितनी असीम हैं हमारी इच्छाएँ!

    अगर कोई अपने संकल्प के दबाव से

    इस त्रासद संक्षिप्तता को और छोटा कर दे

    अहले सुबह हवा को पिंजड़े में बंद कर दे

    ओस को गिरने से रोक दे

    खिलने से पहले ही गुलाब को लूट ले

    जब प्याली में देने को महज़ कुछ घूँट ही हों

    लालच का पत्थर उसके भी टुकड़े-टुकड़े कर देता है—

    जीवन का शहद कड़वे-कसैले अनुभव में बदल जाता है

    सचमुच मौत भी मुश्किल लगने लगती है।

    आह मैंने जन्नत के वे सारे अफ़साने बार-बार सुने हैं!

    अनेक मधुमक्खियाँ स्वर्ग का मोह रचते-रचते ग़ायब हो गईं।

    अनेक व्यापारियों ने यहाँ का नकद चुकाया

    यहाँ के अलावे के उधारखाते में।

    मेरा जीवन क्या है—मेरे पंखों पर बर्फ़ का बोझ बढ़ रहा है,

    जबकि अंदर-अंदर जीवन भर मैंने ग़रीबी के घावों की सुश्रुषा की है।

    मेरा सूरज, उदास और थका-हारा, अब डूबने को है।

    मौत की टकटकी कितनी ठंडी होती है!

    संगीतकार दिल! अपने साज़ छेड़!

    अपने डूबने का समय नज़दीक जान कर

    सूरज पश्चिम के आकाश में फैल गया है।

    तुम्हारी शादी अभी नहीं

    मेरी चिंकारा-आँखों वाली लड़की!

    मेरा बेचारा बेटा, बेरोज़गारी से टूटा-हारा!

    बरसात के साथ ढहती इस दीवार को देखो

    और देखो उस बेचारी बिल्ली के विचित्र लगाव को!

    दिल! बेवकूफ़ दिल! बेक़ाबू!

    मेरी जवानी के दरवाज़े पर दस्तक दो! उसे वापस बुलाओ!

    मैं रात की गहरी चादर धो कर साफ़ कर दूँगी

    सूरज के पहनने के लिए किमख़ाब भेज दो

    और कलगी, उसके सिर पर लगाने के लिए

    झील में चलते हुए झुमाने वाली तानें छेड़ो

    मेरे अहाते में बस पानी से ही हरियाली है।

    अब अगर मौत को आना ही है तो उसे ज़्यादा समेटना नहीं पड़ेगा—

    और मुझे कोई परवाह नहीं अगर वे स्वर्ग के सारे दरवाज़े बंद कर दें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रहमान राही की प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 88)
    • संपादक : गौरीशंकर रैणा
    • रचनाकार : रहमान राही
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2009

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