गूँगे बच्चे के लिए लोरी

gunge bachche ke liye lori

अनाम कवि

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गूँगे बच्चे के लिए लोरी

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    तुम्हारी प्रसन्नता या उदासी

    बुलबुलों की तरह उठकर

    आँखों की सतह पर गई है

    इस वक़्त उसे पढ़ने

    कहीं कोई आँखें नहीं, तुम पर लगी हुईं

    संभव है, मन-ही-मन, अँगुलियों तक आते शब्द हों

    काग़ज़ पर उतरते

    तुम्हारी आँखों के चित्रपट पर

    दुनिया और उसकी हलचल

    घट रही है, मूक-चित्रों की तरह

    तुम चीख़ नहीं पाते

    डूबते हाथ को ऊपर खींच लाने

    तुम चिल्ला नहीं पाते

    किसी निर्णायक की तरह

    तुम देखते रहते हो जीवन का खेल

    दबे पाँव आते-जाते मौसम

    और जीवन की धूप-छाँव के तुम साक्षी हो

    जितनी गंध है धरती में, रोशनी में, जितने रूप हैं

    तुम साक्षी हो, उन सबके

    हालाँकि, दृश्य में ठहर चुकी मूक-बधिरता में, एक धमाका कर

    उठाकर शब्दों की तख़्ती से दे सकते हो संदेश

    संभव है, तब हत्यारे हो जाएँ—दुश्मन, तुम्हारी आँखों और हाथों के

    तुम पढ़ते रहते हो

    प्रकृति का निश्शब्द वैभव

    तुम अपने दृश्यों से रच लेते ही संगीत, भीतर ही भीतर

    जिसे कोई जान नहीं पाता

    पिघल कर काले पहाड़, तुम्हारी रात बन रहे हैं

    आँखों को पत्तों की तरह बंद कर रही है, नींद

    ख़ाली पालने में लेटी हवा को

    हवा ही झुला रही है बेआवाज़

    नावों के पालों में बैठी हवा को

    हवा ही ले जा रही है, तफ़रीह पर

    सिर्फ़ जुगनू और बिजली

    तुम्हारी नींद के घर में दाख़िल हो रहे हैं

    बाहर छूट गए हैं झींगुर, मेढक और गरजते बादल

    गाती हुई बारिश बाहर छूट गई है

    हालाँकि तुमने सुनीं नहीं लोरियाँ

    लेकिन उसके दीप्त स्वर, ले आए हैं जुगनू, देहों में छिपाकर

    फूलों और मिट्टी की गंध से

    छा गया है नींद का वशीकरण

    सो जाओ कि तुम्हारे भीतर बज रहा है रक्त का संगीत

    देह के जंगल में गुम, घड़ी की नब्ज़ बज रही है

    तुममें ठहर गया है सृष्टि का आदि मौन

    सपनों के संवाद, नहीं पा रहे सपनों से बाहर

    सो जाओ कि कल तुम्हें

    कोई आवाज़ नहीं जगाएगी

    सिर्फ़ ख़ुशबू और रोशनी तुम्हें जगा देंगी थपथपाकर

    फिर बिठा देंगी

    गुप-चुप घट रहे संसार की ट्रेन में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक अनाम कवि की कविताएँ (पृष्ठ 157)
    • संपादक : दूधनाथ सिंह
    • रचनाकार : अनाम कवि
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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