अंदर की आग

andar ki aag

शंकर शैलेंद्र

शंकर शैलेंद्र

अंदर की आग

शंकर शैलेंद्र

और अधिकशंकर शैलेंद्र

    ढोल बजे ऐलान हुआ, आज़ादी आई,

    ख़ून बहाए बिना लीडरों ने दिलवाई,

    ख़ुश होकर अँगरेज़ों ने दी नेताओं को,

    सत्य अहिंसावादी वीर विजेताओं को!

    हम चकराए, फ़ेल हो गई बुद्धि हमारी,

    क्षण-भर चकाचौंध में आँखें मुँदीं हमारी,

    पर फिर देखा, अब भी सारा ठाट वही है,

    वही फ़ौज है, वही पुलिस है, लाट वही है!

    ज़मींदार है, खेत और खलिहान वही है,

    गल्ला पहले से कम, किंतु लगान वही है,

    नाम बदल डाले हैं, पर हर काम वही है,

    ढोल, पोल, कंट्रोल वही, गोदाम वही है!

    वह नवाब, वही राजे, कुहराम वही है,

    पदवी बदल गई है, किंतु निज़ाम वही है,

    थका-पिसा मज़दूर वही, दहकान वही है,

    कहने को भारत, पर हिंदुस्तान वही है!

    बोली बदल गई है बात वही है सारी,

    हिज मैजेस्टी छठे जॉर्ज की लंबरदारी,

    कॉमनवेल्थ कुटुंब, वही चर्चिल की यारी,

    परदेशी का माल सुदेशी पहरेदारी!

    छापा बदला, किंतु वही सिक्का ढलता है,

    घटे पौंड की पूँछ पकड़ रुपया चलता है,

    हम चकराए, फ़ेल हो गई बद्धि हमारी,

    क्षण भर चकाचौंध में आँखें मुँदी हमारी!

    खुली हमारी आँखें जब यह ज़मीं बिक चुकी,

    चिर कटार से जब स्वदेश की देह बँट चुकी,

    अपना भाई सुहृद पड़ोसी, ग़ैर हो गया,

    खोद हमारे आँगन दुश्मन बैर बो गया!

    किंतु, आज हम दुश्मन को पहचान चुके हैं,

    उसकी सब काली करतूतें जान चुके हैं,

    ठान चुके हैं हम कि शत्रु से भिड़े रहेंगे,

    कफ़न बाँध इन संघर्षों में अड़े रहेंगे!

    आज ख़ून से रँगी ध्वजा सबसे आगे है,

    क्रांति शांति की लाल ध्वजा सबसे आगे है,

    अपनी क़िस्मत का नूतन निर्माण चला है,

    क्रूर मौत से भीषण रण संग्राम चला है!

    अंदर की यह आग एक दिन भड़केगी ही,

    नई ग़ुलामी की बेड़ी भी तड़केगी ही!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अंदर की आग (पृष्ठ 148)
    • संपादक : रमा भारती
    • रचनाकार : शंकर शैलेंद्र
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2013

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