अभयारण्य

abhyaranya

अजंता देव

अजंता देव

अभयारण्य

अजंता देव

और अधिकअजंता देव

    कहीं बचाए जा रहे हैं बाघ

    हिरण अलग ही कहीं बढ़ रहे हैं

    कहीं सिर्फ़ चिड़ियाँ रह सकती हैं

    मगर कौन-सा वन सुरक्षित है इंसान के लिए?

    कहीं कोई दो एकड़ ज़मीन तक नहीं

    जहाँ पर फैलाकर बैठ सके यह प्राणी

    रोटी और दाल की नियमित सप्लाई हो

    तो यह जीव कितना सुंदर लगेगा

    हज़ारों साल पहले

    सभ्यता गोली की तरह लगी थी इस जीव को

    तब से इसका शिकार जारी है

    पहिए पर चढ़कर पहुँचा था धुआँ

    जो आज तक जमा है फेफड़ों में फफूँद की तरह

    इसकी आँखों का रंग धूसर हो चला है

    रोएँ झड़ गए

    नाख़ून और दाँत भोथरे पड़ गए हैं

    पीठ पर बैठी मक्खी तक उड़ाने को

    इसे चाहिए हथियार

    मच्छर से बचने को

    त्वचा पर मलना पड़ता है रसायन

    हर लिहाज़ से

    अब यह अपनी रक्षा करने में असमर्थ है

    यह अब चिल्लाता नहीं

    रिरिया रहा है बरसों से

    जन्मदर हालाँकि ऊँची है

    पर मृत्यु दर भी कम नहीं

    झुक रही है रीढ़ हर दिन

    किसी को भी याद नहीं

    अंतिम बार कब दिखा था

    एक मज़बूत इंसान

    यह भी सबसे पहले

    वन में ही उत्पन्न हुआ था

    प्राकृतिक संतुलन में इसकी भी भागीदारी है

    दुर्लभ सही

    ख़तरे में पड़ी नस्ल को भी चाहिए

    एक वातावरण

    स्रोत :
    • पुस्तक : राख का क़िला (पृष्ठ 40)
    • रचनाकार : अजंता देव
    • प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
    • संस्करण : 2002

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