डरे हुए आदमी का शब्दकोश

Dare hue adami ka shabdkosh

निखिल आनंद गिरि

निखिल आनंद गिरि

डरे हुए आदमी का शब्दकोश

निखिल आनंद गिरि

और अधिकनिखिल आनंद गिरि

    मेरा परिचय एक ऐसे आदमी से है

    जिसकी प्रेमिका मेज़ पर पड़ा ग्लोब घुमाती है

    तो वो भूकंप के डर से

    भागता है बाहर की ओर

    पसीने से तरबतर

    बाहर खुले मैदान नहीं हैं

    बाहर लालची जेबें हैं लोगों कीं

    जेब में ज़बान है और मुँह में पिस्तौलें

    बाहर कहीं आग नहीं है

    मगर बहुत सारा धुआँ है

    गाड़ियों का बहुत सारा शोर है

    जैसे पूरा शहर कोई मौत का कुआँ है

    मेरा परिचय एक ऐसे आदमी से है

    जो शहर में अपनी पहचान बताने से डरता है

    और गाँव में अब कोई पहचानता नहीं है

    सिर्फ़ इसीलिए बचा हुआ है वह आदमी

    कि नहीं हुए धमाके समय पर इस साल

    कि कुछ दिन और मिले प्यार करने को

    कुछ दिन और भूख सताएगी अभी

    उसने हाथ से ही उखाड़ लिया है

    दाईं ओर का आख़िरी दुखता दाँत

    सही समय पर दफ़्तर पहुँचना मजबूरी है

    और दानव डॉक्टर की फ़ीस से बचना भी ज़रूरी है

    दुखे तो दुखे थोड़ी देर आत्मा

    बहे तो बहे थोड़ी देर ख़ून

    अपरिचित नहीं है ख़ून का रंग

    अभी कल ही तो कूदा था एक स्टंटमैन

    पंद्रह हज़ार करोड़ में बने एक मॉल से

    और उसकी लाश ही वापस आई थी ज़मीन पर

    पंद्रह हज़ार के गद्दे बिछे होते ज़मीन पर

    तो एक स्टंटमैन बचाया जा सकता था

    मगर छोड़िए, इस बेतुकी बहस को

    कविता में जगह देने से

    शिल्प बिगड़ने का ख़तरा है।

    तो सुनिए, इस बुरे समय में

    एक डरे हुए आदमी के शब्दकोश में

    लोकतंत्र किसी दूसरी ग्रह का शब्द है

    तो सुनिए, इस बुरे समय में

    एक डरे हुए आदमी के शब्दकोश में

    लोकतंत्र किसी दूसरे ग्रह का शब्द है

    जिसका अर्थ किसी हिंदू हिटलर की मूँछ है

    और उसके दाँतों से वही महफ़ूज़ है

    जिसके शरीर पर जनेऊ है

    और पीछे एक वफ़ादार पूँछ है

    डरा हुआ आदमी सड़क पर देखता सब है

    कह नहीं पाता कुछ भी शोर में

    सड़क पर जल उठी लाल बत्ती

    एक भूखा, मासूम हाथ

    काले शीशे के भीतर घुसा

    भीतर बैठे कुत्ते ने काट खाया हाथ

    कब कैसे पेश आना है

    ख़ूब समझते हैं एलीट कुत्ते

    एक डरे हुए आदमी के शब्दकोश में

    गाँव सिर्फ़ इसीलिए सुरक्षित है

    कि वहाँ अब भी लाल बत्ती नहीं है

    दरअसल उस डरे हुए आदमी की ज़िंदगी

    भिखारी की फटी हुई जेब है

    ख़ाली हो रहे हैं दिन-हफ़्ते

    और भरे जाने का फ़रेब है

    एक डरे हुए आदमी की ज़िंदगी

    उस आदिवासी औरत के पेट में

    पल रहे बच्चे का पहला रुदन है

    जो गाँव की सब ज़मीन बेचकर

    पालकी में लादकर

    ऊबड़-खाबड़ रास्तों से लाया गया

    शहर के इमरजेंसी वार्ड में

    जिसने एक बोझिल जन्म लेकर आँखे खोलीं

    ख़ूब रोया और मर गया

    उस डरे हुए आदमी के दरवाज़े पर

    हर घड़ी दस्तक देता बुरा समय है

    जो दरवाज़ा खुलते ही पूछेगा

    उसी भाषा, गाँव और जाति का नाम

    फिर छीन लेगा पोटली में बँधा चूड़ा-सत्तू

    और गोलियों से छलनी कर देगा

    इस बुरे समय की सबसे अच्छी बात ये है कि

    एक डरा हुआ आदमी अब भी

    सुंदर कविता लिखना चाहता है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निखिल आनंद गिरि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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