बूढ़ा और बच्चा उर्फ़ दादा और पोता

buDha aur bachcha urf dada aur pota

मोनिका कुमार

मोनिका कुमार

बूढ़ा और बच्चा उर्फ़ दादा और पोता

मोनिका कुमार

और अधिकमोनिका कुमार

    विलंब बूढ़े लोगों का गुण है

    उनके भीतर स्पंदन है

    पर चेहरे स्थिर और विलंबित हैं।

    उनके चेहरों के सामने

    समाज अपने बदलाव पटकता है,

    बूढ़े चेहरे पटक-पटक कर बदलाव को परखते हैं,

    और बमुश्किल मोबाइल फ़ोन जैसी चीज़ के लिए

    हामी भरते हैं।

    बूढ़े लोग शांत चेहरों से युद्ध लड़ते हैं।

    लगभग सभी विवादों और दु:खों का अंत वे जानते हैं,

    लगभग तय जीवन में वे सतत जिज्ञासु और आशावान बनकर जीते हैं,

    उनका प्रिय विषय अतीत है,

    और सबसे बड़ा हथियार विलंब है।

    अनुभव भयावह और आकर्षक शब्द है,

    एक युवक सुबह उठकर

    अनुभवहीन होने के बोध से बौखला उठता है,

    अनुभव को अपनी ओर करने के लिए,

    वह घर छोड़ कर व्यापार करने चला जाता है।

    हम जानते हैं

    ऐसी यात्राओं में,

    पुत्रों को

    राक्षस मिलते हैं,

    रास्ते में

    राक्षसों की मायावी रूपवान पुत्रियाँ मिलती हैं,

    जो मुसाफ़िरों को रूप जाल में फँसा कर उनकी हत्या कर सकती हैं,

    कुएँ मिलते हैं जो प्यास नहीं बुझाते,

    और मुसाफ़िरों को वश में कर लेते हैं

    ऐसे संकट से उन्हें बचा लेती है बिल्ली,

    या किसी साधु का किया हुआ कोई संकेत।

    संकेतों की भाषा में पारंगत होकर,

    पुत्र अंततः कारोबार में सफल होते हैं।

    और बहुत सारा गुप्त जीवन लेकर घर लौटते हैं,

    पुत्र बताना चाहता है यात्रा में उसके साथ क्या हुआ,

    बताने की आकुलता में वह मौन हो जाता है,

    और पिता मुस्कुरा देता है।

    पिता पुत्र के ऊपर नहीं,

    उसके गुप्त जीवन पर भरोसा करता है।

    वह पुत्र के लिए पुत्र की कामना करता है,

    जिसके साथ निरस्त्र होकर,

    विलंब सिद्ध और अतीतजीवी बूढ़ा,

    द्रुत और अविलंब खेलता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आश्चर्यवत् (पृष्ठ 51)
    • रचनाकार : मोनिका कुमार
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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