कहते हो तो सुनो सुनाता हूँ

कि बच्चे को दुलार करने का मन तो हमेशा करता है

लेकिन पास आता है तो मन में कोई और ही बात फँसी रहती है

उसकी मुस्कुराहट के बदले ढंग से कभी हँस भी नहीं पाता हूँ

अभी कल की बात है

घरनी ने कोई अच्छी बात कही थी और फिर फिस्स से हँस पड़ी थी

मैं उस वक़्त किसी और ही ख़याल में डूबा हुआ था

हँसी सुना तो उसकी और देखा लगा कि वह मेरी बेचारगी पर हँस रही है

जैसे कि लोग हँसते रहते हैं

देखकर देह में आग लग गई तो बुरा-भला कह दिया

सुनकर बेचारी बुक्का फाड़कर रोने लगी

उसका रोना सुना तो मन खट्टा हो गया

उस दिन सामने बैठा बुढ़ऊ खाँसा तो बहुत डर लगने लगा

चीख़कर कहा कि अब क्या मुझे खाओगे

उसने जब यह सुना तो वह वहाँ से हट गया

पता नहीं फिर किधर गया

रात को उदासी के साथ लौटा

चार दिन पहले की बात है

जिसके खेत में गुड़ाई कर रहा था

वह फ़ोन पर किसी को अपना दुःख सुना रहा था

कि कर्ज़ा तो पूरे आठ लाख का हो गया है

लेकिन सिर्फ़ चिंता करूँगा तो इससे क्या हो जाएगा

नहर के बग़ल की ज़मीन का सौदा कर लिया है

इस हफ़्ते सबसे मुक्त हो जाऊँगा

सुनकर सोचने लगा कि अपने नाम भी रहता भूमि का कोई टुकड़ा

तो बच्चे की मुस्कुराहट कितनी प्यारी लगती

घरनी से कोई ऐसी बात कहता कि वह दिन-दुपहरिया ठठाकर हँसती

बुढ़ऊ कभी खाँसता तो उसे डपट देता कि बीड़ी का सुट्टा कम खींचा करो

और उसी ज़मींदार की तरह हमेशा मुक्त रहता

चिंता कभी नहीं करता।

स्रोत :
  • रचनाकार : मिथिलेश कुमार राय
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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