वह कहते हैं चुपचाप बैठो

wo kahte hain chupchap baitho

मोना गुलाटी

मोना गुलाटी

वह कहते हैं चुपचाप बैठो

मोना गुलाटी

और अधिकमोना गुलाटी

    चुपचाप बैठो

    और ऊपर देखो आसमान की तरफ़

    खिलते रंगों को;

    सुबह को चहकते हुए;

    चुपचाप देखो!

    वह आवाज़ भी नहीं देते;

    फिर भी कहते हैं

    सुनो :

    और सुनो और बनो

    महकते हुए

    फूल :

    सुबह के साथ उगते हुए

    रक्तिम बिंदु के साथ शुरू करते हैं वह

    खेल रौशनी का और

    सफ़ेद फूल

    के साथ तिरोहित हो जाते हैं

    नीलिमा में;

    और वह मुस्कुराते हैं जब

    हम कहते हैं क्रांति हो रही है...

    क्रांति हो गई है; उनकी

    मुस्कुराहट का जंगल

    मेरे सामने

    फैल गया है और बीहड़ बियाबान

    में गुम हैं

    मेरी अस्थियाँ : वह

    कहते हैं :

    चुपचाप बैठो,

    चुपचाप बैठो...और ऊपर देखो

    आसमान में महकते रंगों को!

    निस्तब्धता में तरंगित होता है संगीत, बजता है

    बियाबान और उगती है घास,

    फूलों के साथ परस उमगता है

    और डगमगाने लगता है पूरा

    अस्तित्व : वह

    अलापते हैं

    चुपचाप बैठो और

    देखो आसमान में उड़ते बादलों को।

    कितनी दूरी है और कितनी है

    चुप्पी

    निस्तब्धता में

    इसमें रहो और रहो चुपचाप;

    वह कहते हैं :

    वह कहते हैं

    चुपचाप बैठो

    और देखो आसमान में

    उफनती लहरों में

    पैठे सागर को!

    स्रोत :
    • पुस्तक : सोच को दृष्टि दो (पृष्ठ 92)
    • रचनाकार : मोना गुलाटी

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