शाम के वक़्त रुद्ध अवस्थाओं वाला आदमी

sham ke waqt ruddh awasthaon wala adami

विजय देव नारायण साही

विजय देव नारायण साही

शाम के वक़्त रुद्ध अवस्थाओं वाला आदमी

विजय देव नारायण साही

और अधिकविजय देव नारायण साही

    मैं उन लोगों में से नहीं हूँ

    जो किसी आदमी की कथनी और करनी में फ़र्क़ देखते ही

    नाराज़ हो जाते हैं

    और अपने और उसके बीच

    एक दीवाल खड़ी कर लेते हैं;

    इसलिए जब-जब मैंने उसको आत्मसम्मान, स्वाभिमान

    और किसी के सामने झुकने की बातें करते सुना है

    ज़्यादातर ख़ामोशी से उसके चेहरे की ओर

    देखता रह गया हूँ।

    उसके चेहरे की नसें डोर की तरह से तन जाती हैं

    और उसके निचले होंठ पर

    हल्की सी थरथराहट होने लगती है

    जिसे मैं उसकी ईमानदारी के सबूत की तरह देखता हूँ।

    इसीलिए जब बहुत कड़वी बात के दौरान

    वह अनायास हाथ बढ़ा कर

    मेरी सिगरेटें लेने लगता है

    तो मैं कुछ कह नहीं पाता

    यह ज़रूर है कि बिना कोशिश के ही

    मेरे मन में उन सिगरेटों की गिनती होने लगती है

    जो वह मुझसे अक्सर ले कर जलाया करता है।

    मेरे मन में उन तमाम सिगरेटों का हिसाब है।

    सिगरेटों का ही क्यों

    रिक्शे के लिए दिए हुए पैसे का भी

    और उन बिलों का भी

    जो मैंने चुकाए हैं।

    मैं नहीं कह सकता कि यह बिना प्रयास का हिसाब

    मेरे कमीनेपन की निशानी है

    या आपसी व्यवहार में सफ़ाई रखने की

    मेरी आदत से उपजता है।

    लेकिन मैं जानता हूँ

    कि अगर कभी मैंने

    इस हिसाब का भूले से भी ज़िक्र कर दिया

    तो वह बेहद तैश में आकर काँपने लगेगा

    शायद उसके होंठ बहुत तेज़ी से थरथराने लगे

    और शायद वह एक ज़हरीले ग़ुस्से की वजह से

    कुछ कह भी पाए।

    सिर्फ़ एक घुटन भरी ओक़-ओक़ की आवाज़

    उसके गले से निकलेगी।

    फिर शायद वह मेरे सामने से फ़ौरन चला जाएगा

    और हमेशा के लिए मेरी अनुपस्थिति में

    मेरे टुकड़े टुकड़े करता रहेगा

    और तब भी उसके निचले होंठ

    उसी तरह थरथराएँगे

    जैसा इस समय औरों के नाम पर होता है।

    ऐसा मेरा अनुमान है।

    मैंने कभी उसे इस रुद्ध अवस्था में

    देखा नहीं है:

    और उसके गले से

    ओक-ओक जैसी आवाज़ ही सुनी है।

    मगर मैं कल्पना कर सकता हूँ।

    कि उसकी आज की तमाम ज़िंदगी

    और होंठों की हल्की थरथराहट के पीछे

    इस क़िस्म की बहुतेरी रुद्ध अवस्थाएँ होंगी

    जब वह कुछ बोल नहीं सका होगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साखी (पृष्ठ 24)
    • रचनाकार : विजय देव नारायण साही
    • प्रकाशन : सातवाहन
    • संस्करण : 1983

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