अविजित साहनी चिड़चिड़े हो चले हैं

awijit sahani chiDchiDe ho chale hain

अविनाश मिश्र

अविनाश मिश्र

अविजित साहनी चिड़चिड़े हो चले हैं

अविनाश मिश्र

और अधिकअविनाश मिश्र

    मेरे स्वर्गीय पिता के अंतिम मित्र श्री अविजित साहनी

    कुछ फ़िल्में डायरेक्ट करना चाहते हैं

    लेकिन मुझे अब लगने लगा है कि उनकी फ़िल्में कभी नहीं बनेंगी

    इसलिए इस विषय से संबंधित उनका सारा कुछ

    मैं अब सार्वजानिक कर देना चाहता हूँ।

    वह एक व्यापक स्क्रीनिंग चाहते थे।

    ‘पहल’ का कविता विशेषांक लेकर जब मैं एक रोज़ उनके घर गया था

    तब मुझे देखकर उन्होंने वायलिन एक तरफ़ रखते हुए कहा था :

    ‘‘मैं ज्ञानरंजन की कहानी ‘बहिर्गमन’ पर एक फ़िल्म बनाना चाहता हूँ’’

    बाद इसके इस विशेषांक से मैंने उन्हें

    वेणु गोपाल की ये कविता-पंक्तियाँ पढ़कर सुनाई थीं :

    ‘थकान अगर उपजाऊ हो

    तब एक तीर का निशान बनाती है

    ज़िंदगी इधर है...’

    वह सांप्रदायिकता पर भी ‘अपराध काल’ नाम से एक फ़िल्म बनाना चाहते थे

    इसकी कहानी हर वह व्यक्ति जान चुका है

    जो उनसे एक बार भी मिला हो

    ‘निर्दोष’ यह एक और फ़िल्म थी जिसके बारे सुना जाता है

    कि उन्होंने अक्षय कुमार को तब साइन किया था

    जब वह ‘खिलाड़ी’ नहीं बना था

    इस फ़िल्म की कहानी एक ऐसे जीवित व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है

    जिसे मृत मान लिया गया है

    इस फ़िल्म में बाल कलाकार की भी एक ख़ास भूमिका थी

    इसके लिए उन्होंने जिन बालकों से वायदा किया

    वे अपना रोल सुनते-सुनते बेहद बड़े हो गए

    उनके पास जाने पर जब-तब इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट मुझे पढ़नी पड़ती थी

    क्योंकि इस फ़िल्म में एक किरदार मेरा भी था।

    एक और फ़िल्म थी... एक और फ़िल्म थी... और एक फ़िल्म थी...

    नामालूम कितनी पटकथाएँ थीं मेरे मददगार उस शख़्स के पास

    जो वह मुझे सुनाया करता था

    तब जब मैं प्रेमचंद की कहानियों-सा यथार्थ जी रहा था।

    ...और फिर कुछ वक़्त बाद ऐसा हुआ

    कि वे सारी कहानियाँ उन्हें धोखा दे गईं

    जिन्हें वे बचाना चाहते थे

    वे भीड़ में दिखाई दीं उनके रूप बदल चुके थे

    एक दृश्य में एक तेरह साल के समझदार लड़के ने

    ख़ुद को तीस साल के एक बेहूदा दुनियादार आदमी में घटा दिया था...

    बदलाव चाहे कितना भी निर्मम क्यों हो

    बदल नहीं पाता कुछ सपने

    क्योंकि हम एक ज़िद में होते हैं

    कि इस बेतरह बदलते हुए सब कुछ के बीच

    कम से कम इन्हें तो बचा ले जाएँ अपरिवर्तित

    अपनी आकांक्षाओं के अधर में।

    लेकिन इस परिवर्तन के बाद अविजित साहनी ने जाना कि जिन कहानियों को उन्होंने रवाँ किया था अपनी सोच में वे अब रवाना हो गई हैं कहीं और कुछ और होने के लिए। वे अब उन्हें भूल चुकी हैं और इधर वह उन कुछ लोगों के मनोरंजन के केंद्र में हैं जिन्होंने उन्हें नया-नया जाना है। इन नए परिचितों को वह उस रूप में स्वीकार्य नहीं हैं जो उन्होंने उन कहानियों के लिए बना रखा है जिनके विषय में वह सोचते हैं कि वे कभी उसी रूप में लौटेंगी जिस रूप में वे थीं।

    वह इन दिनों एक ऐसे जीवित व्यक्ति की तरह हो गए हैं

    जिसे मृत मान लिया गया है

    कहानियों के कुछ टुकड़े वह अब भी सँभाले हुए हैं

    मैं उनसे मिलने जाना चाहता हूँ

    यह जानते हुए भी कि वह अब उस तरह नहीं मिलेंगे

    क्योंकि कहानियाँ कुछ इस क़दर बदली हैं इस दरमियान

    कि उन्हें सुनाने वाले चिड़चिड़े हो चले हैं

    और बनाने वाले अपवाद।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अविनाश मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए