दो ध्रुवांतों के बीच

do dhruwanton ke beech

मानबहादुर सिंह

मानबहादुर सिंह

दो ध्रुवांतों के बीच

मानबहादुर सिंह

और अधिकमानबहादुर सिंह

    औरत होना क्या होता है

    एक औरत अपने बारे में

    क्या मेरा सोचना सोचती है?

    सुना तो नहीं किसी औरत से

    औरत होने का गिला।

    औरत होने का सुख क्या होता है?

    किसी औरत के बहुत क़रीब होकर भी

    नहीं जाना जा सकता

    उसके औरत होने का मर्म।

    उसकी आवाज़

    देहयष्टि

    अंगों की सिहरन, गुदगुदी, जुगुप्सा

    पाकर कही तो पुरुष

    भोगता है अपने होने का अर्थ।

    जब कोई औरत

    अपनी कमनीयता से

    विकल करती है किसी पुरुष के प्राण

    क्या इसी विकलता में करती है अपना एहसास?

    वह दर्द की चट्टान तोड़

    जनती है बच्चे

    इसी औरत होने के अर्थ

    क्या कभी बूझ पाएगा पुरुष

    क्योंकि पुरुष के पास कुछ भी नहीं है

    इस दर्द के समान।

    दो अनुभवों के ध्रुवांतों के बीच

    बह रही जीवनमय अंतःसलिला

    बिछलती छवि लहरियों की

    अनगिन कलाएँ लिए

    काल के आर-पार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रचना संचयन (पृष्ठ 227)
    • संपादक : जीवन सिंह, केशव तिवारी
    • रचनाकार : मानबहादुर सिंह
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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