डिठौना था उसका नाम

Dithauna tha uska nam

चंद्रकांत देवताले

चंद्रकांत देवताले

डिठौना था उसका नाम

चंद्रकांत देवताले

और अधिकचंद्रकांत देवताले

    नीम के नीचे टाट पर बैठकर हजामत बनवाते उस लड़के को

    छोड़ आया हूँ मैं नर्मदा किनारे बसे एक क़स्बे में

    और भूलभुलैया में समय की ढूँढ़ रहा हूँ पता नहीं क्या

    याद है सिर्फ़ पाँच बोगदे एक रेंगती रेल

    धुआँ उगलते सीटी फूँकते इंजिन के सहारे

    जलते हुए यानी सचमुच जलते हुए काले पहाड़ों के बीच

    जुगनुओं को पकड़ जेब में रखने वाला लड़का

    क्या अभी भी रेत के ढेर में छिपाकर गेंद छका रहा होगा काली को

    काली जिसके ज़मादार पिता सफ़ाई करते थे टेशन की

    और जिसकी पप्पी लेने के कारण पिटाई हुई थी कई बार उस

    लड़के की क्योंकि वह बाबू का बेटा था और मना करने पर भी

    सौ बार चिपकता था जाकर काली से

    काली पता नहीं कहाँ होगी सफ़ाई करती बुहारती सड़कों

    या गलियों को एक भरी-पूरी औरत होगी सुंदर और पुष्ट

    क्या अभी भी गाती होगी वह आख़िरी मिलाने और जिया भरमाने का गीत

    गोरी चिट्ठी थी कित्ती सुंदर आँखों वाली

    शायद इसलिए काली कहकर पुकारना सुहाता होगा उसकी महतारी को

    डिठौना है इसका नाम एक बार हँसकर बोली थी मुझसे वह

    वह लड़का जो पुलकता था साथ रहने से काली के

    छूट गया है मुझसे फिसलकर डूब गया है नर्मदा के भँवर में

    पर वह लड़की नहीं हटती बदलकर आकर्षित करती एक पुष्ट

    महिला में गाने लगती है बिछी रेत पर कोने में किसी एकांत के

    बचपन का वही आज तक बेचैन करता गीत

    धुल जाता है बचपन का काजल आँख से आँख पर चढ़ जाता है

    चश्मा पर मन का काजल उजला होकर आँखों में

    गीला हो जाता है अक्सर मैं नहीं किसी से कुछ भी कह सकता

    जैसे अपनी रक्षा करता हूँ गुपचुप भाषा के भीतर

    अब बचपन के मुँह से नाम पुकारना उसका बेहद मुश्किल है

    उसके नन्हें हाथों की रेती में छिपकर हाथ नहीं ढूँढ़ सकता मेरा

    न्याय समय का सचमुच बेहद क़ातिल है

    पर इन दिनों विस्मय से नहीं पुलकता

    दुख से बेहद घबरा जाता है मेरा मन

    जब-जब पढ़ता या सुनता हूँ हत्या आगज़नी और बालत्कार की बातें

    तब-तब चीख़ों में झुलसी लाशों में अपमानित देहों में

    हर बार शुमार लगती है मुझको अपने बचपन की साथिन

    आदिम अपराधों के दाँत टूट चुके थे सदियों पहले

    अब यह सफ़ेदपोशों की साज़िश वाले अनगिन चेहरों का समय

    ख़तरनाक हत्यारा कंप्यूटर के गणित सहारे

    चीख़ों की पैदावार बढ़ाता सिर्फ़ एक कुर्सी की ख़ातिर

    इसे समझना बेहद मुश्किल फिर भी रक्त नहाए

    चाक़ू फरसे तलवार के बीच मादा ख़रगोश-सी कुलाँचे भरती

    बचपन के साथ जैसी

    छोटी-छोटी बातें शायद कोई असर दिखाएँ...

    स्रोत :
    • पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 119)
    • रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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