कहीं पास में

kahin pas mein

दिनेश कुमार शुक्ल

दिनेश कुमार शुक्ल

कहीं पास में

दिनेश कुमार शुक्ल

और अधिकदिनेश कुमार शुक्ल

    आई सोंधी गंध सुहानी

    कहीं पास में बरसा पानी

    बोली कोयली डरती-डरती

    करती बारिश की अगवानी

    अबकी आम बहुत कम आए

    आँधी ने सब बौर गिराए

    तोता सुग्गा फिरें उपासे

    अमरस के सब रहे पियासे

    भूख प्यास अब हुई पुरानी

    कहीं पास में बरसा पानी

    अगर यहाँ भी आता पानी

    कहती कुछ भी मेरी नानी

    मैं तो भाग बग़ीचे जाती

    और फुहार में ख़ूब नहाती

    फिर बूँदों के तार पकड़कर

    आसमान तक चढ़ती जाती

    आसमान से बादल लाती, बूँदें लाती

    अमृत लाती, बिजली लाती

    बूँदों का मैं हार बनाती

    और बिजली का मुकुट सजाती

    जिसे पहन फिरती इठलाती

    मैं ख़ुद पावस रितु बन जाती

    फिर अमृत की झील बनाकर

    और बादल की नाव सजाकर

    उसमें रोज़ तैरेने जाती

    छप-छप ऊधम ख़ूब मचाती

    मैं तो ख़ूब करती मनमानी

    अगर यहाँ भी आता पानी

    कहती कुछ भी मेरी नानी

    आई सोंधी गंध सुहानी

    कहीं पास में बरसा पानी

    स्रोत :
    • पुस्तक : समय चक्र (पृष्ठ 46)
    • रचनाकार : दिनेश कुमार शुक्ल
    • प्रकाशन : अनामिका प्रकाशन
    • संस्करण : 2011

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