खिड़कियों की रुलाई

khiDakiyon ki rulai

बोधिसत्व

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    एक कार कुछ ही देर पहले

    घर से थोड़ी दूर आकर रुकी है

    उसकी हेड लाइट जल रही है

    कुछ लोग चिल्ला रहे हैं जल्दी करो,

    जल्दी करो!

    लोगों के चिल्लाने से पता चला

    किसी को जाना है

    कोरोना के इलाज के लिए!

    एक रोती हुई महिला

    बार-बार पलट कर देखती हुई

    धीरे-धीरे

    बढ़ रही है उस कार की ओर!

    ऐसे जैसे जाना हो उसे कहीं

    कहीं भी!

    पीछे शायद उसका बेटा खड़ा है

    पति भी है और बिटिया या बहू या कोई बहन!

    उसका रोना दूरी और कार की आवाज़ के बीच एकदम सुनाई नहीं दे रहा

    बहुत-सी रुलाइयाँ शब्दहीन हो गई हैं

    वे केवल ध्वनियाँ बची हैं

    केवल सिसकियाँ!

    कुछ लोग उस कार

    और उस रोती हुई महिला की तरफ़ बढ़ते हैं

    वे भी रो रहे हैं

    बिना शब्द किए

    प्रकाशित उनके चेहरे

    विषाद और आँसुओं से भरे हैं।

    महिला रुकती है

    रोती हुई निरंतर देखती है

    कुछ दूर पर ठिठक गए लोगों को

    कोई नहीं जो साथ आए थोड़ा और पास।

    वह लौट नहीं सकती

    वह रुक नहीं सकती

    उनमें से निकल कर दौड़ता है युवक

    लेकिन कार के साथ आए लोग

    डपट कर रोक देते हैं उसे

    वह चीख़ता है :

    जाने नहीं दूँगा जाने नहीं दूँगा।

    महिला उसे हाथ के संकेत से दूर रहने को कहती

    रोती-विलापती-कँपकँपाती बैठती है कार में।

    कोई सामान

    कोई प्रस्थान और

    वापसी का निश्चित पता

    वह जा रही है

    एक अनिश्चय की यात्रा पर

    इन कुछ लोगों के आँसुओं में

    कोई और आँसू घुलता नहीं अब

    इतना छिन्न-भिन्न विलाप

    इतने उपेक्षित आँसू

    इतनी निष्ठुर विदाई

    अचानक चलन में कैसे गई?

    कार जा रही है

    धीरे-धीरे

    उतने ही प्रकाश में उतने ही लोग

    वैसे ही देखते हैं कार की दिशा में

    कार जिधर गई है

    उधर भी उजाला है दूर तक

    दूर तक शोक प्रतिध्वनित है

    दूर तक दुःख प्रकाशित है

    कितनी देर खड़ा रह सकता है आदमी

    एक अनिश्चित यात्रा पर निकले स्वजन के लिए भी?

    मैं किससे पूछ सकता हूँ :

    रोती हुई उस महिला को कैसे चुप कराया जा सकता है!

    उदास लोगों को

    ढाढ़स बँधाने के लिए क्या कोई नया शब्द खोज लिया गया है?

    रोते लोगों को चुप कराने के लिए नई भाषा क्या नियत हुई?

    विदा करने का कोई नया सूत्र ईजाद नहीं हुआ है अब तक

    शायद ये विदाइयाँ अपने को विदाई माने ही नहीं!

    सब चले गए

    जहाँ कार खड़ी थी वहाँ एक उदासी

    अदृश्य खड़ी है

    जो कार के समूचे आकार से बहुत बड़ी है

    छा जाता है एक विचित्र सुन्न

    इस सुन्न के बीच

    अचानक सुनाई पड़ती है

    मोहल्ले की

    अनेक खुली खिड़कियों के बंद होने की रुलाई!

    स्रोत :
    • रचनाकार : बोधिसत्व
    • प्रकाशन : कल्चर बुकलेट

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