डरे हुए लोग

Dare hue log

रेखा चमोली

रेखा चमोली

डरे हुए लोग

रेखा चमोली

और अधिकरेखा चमोली

    डरे हुए लोग किसी एक तरफ़ नहीं होते

    वे थोड़ा-थोड़ा सबकी तरफ़ होते हैं

    बात तो आप ठीक कह रहे हैं पर क्या करें?

    दुनियादारी भी देखनी होती है कहकर

    हर एक को साथ लिए होते हैं

    ये वर्तमान में जीने के बजाय अतीत का गुणगान करते हैं

    भविष्य में मिलने वाले लाभों पर चर्चा करते हैं

    इन्हें मनुष्यों से ज़्यादा भरोसा देवताओं पर होता है

    ये नाक की सीध में आते-जाते हैं

    और किसी भी पचड़े में नहीं पड़ते

    इनका पेट और बिस्तर सुरक्षित रहें बस

    इनका कोई मत या विचार नहीं होता

    इनका मुख और कान सिर्फ़ फ़ायदा बोलता और सुनता है

    ये उठते-सोते समय दिशा का और गंदगी करते समय

    अपनी चहारदीवारी का ध्यान रखते हैं

    ये कभी-कभी इतना डर जाते हैं कि इनके पेड़ों पर लगे फल

    पेड़ों पर ही सड़ जाते हैं पर किसी के साथ बँटते नहीं

    ये पड़ोसी के बेटे को गली में छिपकर सिगरेट पीता देख डाँटते नहीं

    बचकर निकलते हैं और किसी तीसरे के साथ बैठकर

    संस्कारों पर बात करते हैं

    डरे हुए लोग अपने डर को दूसरों पर थोपते हुए चलते हैं

    जिससे अपनी एक बड़ी बिरादरी बना सकें

    और डरने को सार्वजनिक मान्यता दिला सकें।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रेखा चमोली
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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