यह सिर्फ़ एक सरकार से नाख़ुश होने का मसला नहीं था

ye sirf ek sarkar se nakhush hone ka masla nahin tha

पराग पावन

पराग पावन

यह सिर्फ़ एक सरकार से नाख़ुश होने का मसला नहीं था

पराग पावन

और अधिकपराग पावन

    नहीं लड़की!

    यह सिर्फ़ एक सरकार से नाख़ुश होने का मसअला नहीं है

    यह एक पार्टी से घृणा का मसला नहीं है

    जिस नंगे आदमी को लजाधुर साबित करने में

    उघड़ती जा रही है तुम्हारी भाषा

    यह उसका भी मसला नहीं है

    बहुत डरावनी होती है प्रतिशोध की फ़सल

    बहुत हाहाकारी होती है बदले की आग

    बहुत निरीह होता है

    बलात्कारी के बचाव में खड़े तिरंगे का चेहरा

    रोपी गई घृणाएँ बहुत देर तक फलती हैं

    बहुत देर तक गंधाती है

    प्यार के विछोह में मरी देश की आत्मा

    देशप्रेम वह नहीं होता जो पंद्रह अगस्त को

    हूक की तरह उठता है तुम्हारे सीने में

    या अस्त्र-शस्त्रसज्जित सैनिक को देखकर

    जो उमड़ता-घुमड़ता है तुम्हारे मन के घाट पर

    देशप्रेम होता है

    धान की कच्ची फली में पलते दूध से

    अपने लहू का स्वाद आना

    और दो ईंट के बीच कुचल गई

    अपनी उँगली की पीड़ा को

    रोज़गार की पाली मुस्कान से निरस्त कर देना

    देशप्रेम का पाठ उस प्रोफ़ेसर से मत पूछो

    जिसने जीवन भर गढ़ और मठ सिर्फ़ इसलिए तोड़े

    कि उसे सारे गढ़-मठ अपने मुताबिक़ चाहिए

    देशप्रेम की कविता उस कवि से मत सुनो

    जो काल के कपाल पर लिखता मिटाता है

    लेकिन अपनी बरौनी पर बैठे क़ातिल को देख नहीं पाता है

    नहीं लड़की!

    यह व्यक्तिगत चुनाव और ख़ुदग़र्ज़ी का भी मसला नहीं है

    तुम्हारी मेरी दौड़ अपनी-अपनी उम्र तक

    तुम्हारा-मेरा बैर अपनी-अपनी साँस तक

    पर गटर में घुटकर मर गए महन्ना मुसहर

    और बैंगन तोड़ते बखत साँप डँसने से मरी

    रम्पत कोईरी की पत्नी

    इस देश की चमचमाती महफ़िल में

    दरबान की तरह अनिवार्य और उपेक्षित हैं

    उन्हें भारतीय मानचित्र पर मात्र प्रश्नचिह्न की तरह देखना

    एक कायराना रूमान है

    जब तक उन्हें राष्ट्रीय शर्म मानकर

    मर नहीं जाते राष्ट्रपति और पराग पावन

    तुम्हारा मेरा बैर अपनी-अपनी साँस तक

    लेकिन मूढ़ताओं का मज़ाक़ बनाती चार्वाक की कविता

    आबाद रहेगी इसी देश में

    इसी देश में रहेंगे बुद्ध

    अपनी हथेली पर अपना सिर लिए हुए

    किसी बंदूक़ किसी तोप से रोकी जा सकेगी

    कबीर के तर्कों की सेना

    किसी भी राजसिंहासन से ठोस निकलेंगे

    मीरा के इनकार के ऐतिहासिक फ़ैसले

    और रैदास के कठवत में भर दिए जाएँगे रंग

    जिससे बनाया जाएगा भारत का सबसे मज़बूत नक़्शा

    चलो, मैं देशद्रोही ही सही

    तुम्हारे आरोप की पुष्टि

    मैं भट्ठे से धुँआसे अपने रंग से कर लूँगा

    लेकिन अस्सी हज़ार के सोफ़े पर बैठी तुम्हारी आवाज़

    जिसमें सवा सौ बीघे खेत का घमंड ठनक रहा है

    हमारे जन-गण-मन के अधिनायकों की चुगली करती है

    और संदर्भसहित व्याख्या करती है

    भारत माता की जय में उठी तुम्हारी मुट्ठी की

    देश की हड्डी में मज्जा बनकर घुल गया किसान

    कमल के तिरालीस पर्याय पर गर्व कर सकता है

    और बारिश के लिए कोई ताज़ा उपमा ढूँढ़ सकता है

    लेकिन उनसे यह उम्मीद मत करना कि

    उसमें किसी नायिका के भीगते आँचल के निशान होंगे

    अभी मेरे क्षोभ पर तुम दया कर लो

    अभी मेरी चिंता को चुटकुला कह लो

    अभी मेरे दुख को राजनीतिक मान लो

    लेकिन किसी दिन

    इतिहास का उड़ता हुआ कोई घिनौना पन्ना आएगा

    और वर्तमान के मुखपृष्ठ पर चिपक जाएगा

    जिस पर गलियों में बहते ख़ून को रोकने का

    कोई उपाय नहीं लिखा होगा

    और उस रोज़

    तुम्हारा लज्जित अहंकार कह नहीं पाएगा कि

    यह सिर्फ़ एक सरकार से नाख़ुश होने का मसला नहीं था

    यह सिर्फ़ एक पार्टी से घृणा का मसला नहीं था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पराग पावन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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