दो औरतों की नियति कथा

do aurton ki niyti katha

विनय सौरभ

विनय सौरभ

दो औरतों की नियति कथा

विनय सौरभ

और अधिकविनय सौरभ

    यह उन दो स्त्रियों की नियति कथा है

    जो गाँव बदर कर दी गईं

    जिनके बारे अब कहा जा रहा है

    कि अकेली थीं वे इस संसार में

    उनके भीतर अकेलेपन का एक गहरा कुआँ था

    जिसमें वे हमेशा गिरी रहीं!

    अब वे गाँव बदर कर दी गई हैं

    तो ज़ाहिर है एक दिन उनके किस्से में लोगों को

    वह तरलता नहीं मिलेगी

    जिनके बारे में सबसे पहले घोषित हुआ

    कि वे अव्वल दर्जे की वेश्याएँ थीं

    प्रमाण में यह बताया गया कि

    वे लड़कियों-स्त्रियों से हँसी-ठट्ठा करती थीं,

    लेकिन मर्दों को देखकर ख़ामोशी में पड़ जाती थीं

    डर था मुर्ग़ियों में फैले उस वायरस की तरह

    कि एक दिन गाँव की सारी स्त्रियों को

    वेश्या बना डालेंगीं वे मात्र दो स्त्रियाँ!

    वे सिर्फ़ दो स्त्रियाँ थीं

    और गांव के सीमांत पर

    एक किराए के मकान में रहती थीं

    क़यास यह भी था वे पाकिस्तान से भेजी गई ख़ुफ़िया औरतें हैं

    जिन्हें यहाँ की औरतों का चरित्र और ईमान

    नष्ट करने के वास्ते भेजा गया है

    यहाँ आपका विस्मय वाजिब है भाई साहब!

    गाँव की सारी औरतों का चरित्र और ईमान कैसे नष्ट हो सकता था

    वे संपन्न थीं और दोनों शाम भरपेट भोजन करती थीं

    उनके पास उनके पति थे

    मर्यादाओं से घिरी एक शालीन समाजिकता थी

    अब वे दो औरतें जिन्हें गाँव बदर कर दिया गया है,

    कैसे कह सकते हैं कि वे वेश्याएँ या ख़ुफ़िया ही थीं?

    क्या एक स्त्री का ज़िंदादिल होना

    और किराए के मकान में अकेली रहना

    उसके वेश्यापन या ख़ुफ़िया होने के लक्षण हैं?

    तो उस आदमी को आप वेश्यागामी कहेंगे

    जो उन औरतों से थोड़ी दूर,

    अकेले उन्हीं की तरह,

    एक किराए के मकान में रहता था?

    संभव है वे दो औरतें

    यहाँ एक नई ज़िंदगी शुरू करने आई हों

    और हम उन्हें जल्दबाज़ी में वेश्याएँ कह बैठे हों!

    वे वेश्याएँ होतीं तो नियमित रूप से अख़बार नहीं मँगातीं!

    वे वेश्याएँ या संदिग्ध भी कहाँ थीं

    जब किसी ने उन्हें धंधा करते हुए नहीं देखा!!

    सुना तो यह भी गया कि वे दोनों बहनें थीं

    एक लंबी उम्र पार करने के बाद भी अनब्याही थीं

    और पुरुषों से घृणा करती थीं

    लेकिन इस दुनिया में

    अब वे सिर्फ दो औरतें थीं

    अकेली थीं

    जवान थीं

    विडंबना है

    अकेली और जवान औरतों के बारे में

    कुछ भी कहने से इस समाज का मुँह

    स्वाद से भर जाता है!

    वे गाँव बदर होकर कहाँ गईं

    कोई नहीं जानता...

    तय है वे जहाँ से आई होंगी

    वहाँ से उनके सारे निशान मिटाए जा चुके होंगे

    यहाँ वे अपनी पहचान ढूँढ़ने आई होंगी

    और हमने उन्हें वेश्याएँ कह दिया!

    गाँव बदर होने के बाद वे वेश्याएँ कहाँ गई होंगी

    वे फिर किस दिशा में कौन से नगर को जाएँगी

    और कहाँ बसेंगी...!

    और जहाँ क्या निश्चित है कि

    उन्हें वेश्याएँ कहा जाए?

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनय सौरभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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