जहाँ मेरा देश था

jahan mera desh tha

सविता सिंह

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जहाँ मेरा देश था

सविता सिंह

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    कुछ दिनों पहले जहाँ एक राह थी

    अब वहाँ एक दीवार है

    थीं जहाँ हमारी इच्छाएँ वहाँ लालच है सिर्फ़

    कामना थी जहाँ लहराती वासना है

    जहाँ ख़ुशी थी दुख की गझिन छाया है

    जहाँ सारा साहस था वहाँ ग़ज़ब की लाचारी है

    जहाँ मेरा देश था अब वहाँ एक बाज़ार है

    वहाँ उस पेड़ पर बैठा पखेरू जैसा दिखता है जो

    वह असल में कुछ और है

    रंगीन आँखों वाली मछली जल में तैरती

    दरअसल युद्ध में काम आने वाला एक मारक यंत्र है

    पड़ोस में रहने वाले सामान्य से दिखते लोग

    ख़तरनाक गुप्तचर हैं हमारा नाम-पता बटोरते

    दफ़्तर में कोने में बैठने वाला क्लर्क

    करता है आजकल अपनी हैसियत से बड़ा काम

    वह दर्ज कर रहा है मारे जाने वालों के नाम

    मेरा प्रतिनिधित्व करती दिखती सरकार मेरी नहीं

    मेरा देश हथिया चुका है कोई और देश

    हद है जो कुछ जैसा दिखता है वह वैसा नहीं अब

    जहाँ जो कुछ था वहाँ नहीं अब

    स्रोत :
    • पुस्तक : नींद थी और रात थी (पृष्ठ 127)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

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