दुर्गा टॉकीज़ : काम और आराम

durga taukiz ha kaam aur aram

असद ज़ैदी

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दुर्गा टॉकीज़ : काम और आराम

असद ज़ैदी

और अधिकअसद ज़ैदी

    दुर्गा टॉकीज़ की ज़मीन से उभरना

    हमारे जनपद में सभ्यता का दूसरा चरण था

    यह पुनर्जन्म की वापसी थी

    बेशुमार बच्चों ने समझिए इसी

    दुर्गा टॉकीज़ में जन्म लिया

    उनमें अधिकांश जीवित हैं

    तंदुरुस्त हैं और मज़े में हैं

    यों हमारे जनपद की प्राचीनता मशहूर है

    यह ध्रुपद और धमार से भी प्राचीन है

    वंदे मातरम से भी प्राचीन है

    हिंदी जाति और उसकी कलाओं से भी प्राचीन है

    यह हिंदुस्तान से भी प्राचीन है

    पहले यहाँ जानवर घूमा करते थे

    आदमी तो यहाँ बाद में आए

    और उन्होंने चलाना शुरू किया इतिहास वग़ैरा का चक्कर

    इस मिट्टी को ज़रा कुरेदिए, इसमें आपको

    हमारी महान जनता की पसलियों के टुकड़े

    और सभ्यता के चिथड़े मिलेंगे

    यहाँ आना और जाना लगा रहा

    मरना और मारना चलता रहा

    कितने मरे—अकाल से, महामारी से, वबाल से,

    तलवार से, तोप और बंदूक़ से, ख़ुद अपने ही कमाल से,

    कायरता से, नष्ट हो जाने की शुद्ध प्रतिभा से

    बहुत-सी दास्तानें हैं, लेकिन कोई भी उनमें पूरी नहीं

    महान काम—जिनमें हरेक अधूरा रहा

    और नाम जिनकी कोई गिनती नहीं, किस-किसकी याद करें

    और मंज़िलें और इरादे जो तब से अब तक चले आते हैं

    लड़ाइयाँ देखीं देखा लड़ाइयों का ख़ात्मा

    अंत में हक़ीकत कुछ और ही पाई गई

    अंत में ज़ुल्म, ख़ूँरेज़ी, ग़ारतगरी, दिलेरी,

    आज़ादी, क़ुरबानी, आन-बान, शहादत, बेहतरी

    और दूसरी फुटकर हिमाक़तों पर

    मनोरंजन की जीत हुई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सरे−शाम (पृष्ठ 172)
    • रचनाकार : असद ज़ैदी
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 2014

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