पता नहीं होने की सज़ा

pata nahin hone ki saza

नवनीत पांडे

नवनीत पांडे

पता नहीं होने की सज़ा

नवनीत पांडे

और अधिकनवनीत पांडे

    अरे!

    तुम्हारी तो

    सारी ही फ़सल

    बर्बाद हो गई!

    हाँ पटवारी जी!

    आप देख लो!

    कुछ भी नहीं बचा!

    कहते-कहते

    बुधिया का गला भर आया

    ठीक है! ठीक है!

    चिंता मत करो!

    मुआवज़ा पूरा दिला दूँगा!

    तुम्हें पता तो है न...

    हाँ... हाँ... पटवारी जी

    आपका... सरपंच जी का

    ऊपरवालों का

    सबका मालूम है...

    पर मेरा घर तो बच जाएगा ना!

    क्यों नहीं बचेगा!

    तुम इतने समझदार हो!

    हम सबके घर बचा रहे हो!

    तुम्हारा घर भी पक्का बचेगा!

    बुधिया के होंठों पर

    मरी-मरी हँसी

    जुड़े हुए हाथ

    सरपंच-पटवारी के होंठों

    कुटिल विजयी हँसी

    पूरे काग़ज़ात थे!

    पर सही राम को

    कुछ भी मालूम नहीं था

    सरपंच का

    पटवारी का

    ऊपर वाले का

    घर बचाने का

    किसी भी ग़लत का

    बुधिया की बुद्धि से

    उसका काम पहली ही लिस्ट में हो गया

    पर सही राम की फ़ाइल

    वहीं की वहीं अटकी है

    वह आज भी

    सरपंच-पटवारी के

    चक्कर पर चक्कर लगा रहा है

    अपने सही होने और

    पता नहीं होने की सज़ा पा रहा है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : नवनीत पांडे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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