कोरोना और चुनाव

korona aur chunaw

आयुष झा

आयुष झा

कोरोना और चुनाव

आयुष झा

और अधिकआयुष झा

    एक डॉक्टर की मौत के बाद

    पेटफाड़ पोस्टमार्टम के दौरान

    कई नर्सों की चूड़ियाँ, बिंदी

    और ब्लाउज़ के टूटे हुए दर्जनों हुक

    बरामद किए गए

    कुछ मीडियावालों ने ब्रेकिंग न्यूज़ में

    राजस्थान के किसी गाँव में

    तेल के कुएँ खोजने की ख़बर चलाई

    तो कुछ ने कहा :

    नमस्कार,

    ये हाइवे ईश्वर के मोहल्ले तक जाता है!

    उजले बगुले और टिड्डियों में

    हरित-क्रांति लाने की होड़ मची है

    जहाँ-जहाँ हरा है

    वहाँ गिद्धों के पंजों के निशान

    हरा देखते ही चौंक उठता हूँ

    और ख़ुद के ज़र्द होने तक 'ज़र्द होने' को

    संतरे की तरह चूस-चूसकर पीता हूँ

    मेरे फेफड़े में संतरे का बगान देख

    वह डॉक्टर अपनी अधजली सिगरेट को

    छोटी बच्ची समझ टहलने छोड़ गया

    ओह मेरी बच्ची!

    इससे पहले कि कोई बहेलिया कतर जाए

    तुम्हारे पंख

    किसी संतरे पर बैठ स्वप्न देखने की दिशा में

    उड़ते हुए

    संक्रमित हो जाओ

    छूने के बजाय वे सभी दूर खिसकेंगे तुमसे

    क्यूँकि संक्रमण जीवन की मशाल बन

    भेड़ियों को खदेड़ आता है शहर से दूर

    कोरोना बीते किसी सरकारी समारोह का जूठन बन

    पसरा हुआ सड़क के चारों ओर

    मानवता कुतिया साली चाट रही साबुन का झाग

    गर कोई साँस लेने की लंबी बीमारी से

    नजात पाए

    तो कोरोना

    कोई साँस लेने ख़ातिर ऑक्सीजन उधार माँगे

    तो कोरोना

    कोई बाबर आज़म या स्टीव स्मिथ की बल्लेबाज़ी से

    मंत्रमुग्ध तालियाँ बजाए तो कोरोना

    गर कोई किसानों के लिए लड़े

    लड़ते हुए लाठियाँ खाए

    कृषि-ऋण से तंग आकर कोई फाँसी झूले

    विरासत में कुछ सवाल छोड़ जाए तो कोरोना

    सवाल पूछने वाले सबके सब कोरोना के सगे-सबंधी

    जिसके पास कोई जवाब नहीं वे :

    लाजवाब लाजवाब लाजवाब''

    लाजवाब लोगों की मस्त हाथियों-सी चाल

    आँखों में घड़ियाली आँसू

    इस तरफ़ से उस तरफ़ सत्ता की आदम भूख

    एक हाथ में चुनाव-प्रचार की तलवार

    भीड़, जुलूस, ढ़ोल-नगाड़े

    दुसरे में कोरोना की ढाल

    इन मंदिर-मस्जिदों का अचार डालूँ

    जब राह चलते दम घुटने से मर रहे हैं लोग?

    कहाँ बादलों की ओट में छुपे पड़े हैं हॉस्पिटल

    एंबुलेंस, ऑक्सीजन की थैली

    कोई प्राथमिक उपचार

    हॉस्पिटलों की खोज में निकले अधमरे लोग

    एकत्रित हो रहे मुर्दा-घाट पर

    धूहहह धूहहह भस्म हुआ जा रहा सब कुछ

    भेड़िए और कुत्तों में ताज़े मांस

    मुलायम अस्थियाँ

    और जले हुए ख़ून का बँटवारा

    चुनाव चुनाव चुनाव

    और ऐसे में भी चुनाव?

    अरे ऐसे में ही चुनाव

    बस ऐसे में ही चुनाव

    इन दिनों चुनाव प्रजातंत्र का वसंत

    दूर-दूर तलक सरसों की तरह खिले हुए हैं

    कटे हुए हाथ

    किसी हाथ में राष्ट्रवाद का तमग़ा

    किसी में धर्म की चाबुक

    जनता अपनी ही पीठ पर चाबुक बरसाते

    गा रही वसंत-गीत

    जबकि किताबों में दफ़्न हैं

    स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार की रेलगाड़ियाँ

    सबके पास अपनी-अपनी साइकिल

    अपनी-अपनी लहूलुहान पीठ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आयुष झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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