बताओ बताओ

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बोधिसत्व

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बोधिसत्व

और अधिकबोधिसत्व

    बहुत थक गया हूँ

    फेफड़े में बहुत कम बची हैं साँस

    देह लोहू का गोदाम हो गया है जैसे

    कहाँ है मेरी आत्मा

    वह है भी कि नहीं?

    सोने जाता हूँ

    सो भी जाता हूँ बहुत गहरे

    किंतु नींद नहीं आती

    रात-दिन मेरी नींद में

    बहुत भीतर कोई पैदल चल रहा है लगातार

    बुद्ध पूर्णिमा की रात के पहले से

    काली चौदस की रात तक लगातार।

    मैं उससे कहता हूँ रुको

    विराम ले लो

    दिखाओ अपने पैरों के घाव

    वह गहरे घाव वाले पैरों को दिखाता है

    लेकिन रुकता नहीं

    चलता रहता है

    वह कहता है कि

    ये घाव आराम करने से नहीं चलने से भरेंगे।

    वह कहता है कि उसके नाना 1930 में

    विंध्याचल से पैदल आए थे बंबई

    वह 2020 में पैदल जा रहा है—

    मुंबई से विंध्याचल!

    नाना के पास आने के लिए किराया था

    तब अँग्रेज़ों की सरकार थी

    मेरे पास जाने का किराया

    और साधन नहीं है

    यह अपनों का राज्य है।

    मैं उसे समझाता हूँ

    शिकायत मत करो किसी की

    वह कहता है कि

    तुम रुकने को कहोगे तो मैं शिकायत करूँगा

    तुम मेरे पैरों के घाव दिखाने को कहोगे

    तो मन के घाव देखने होंगे!

    मैं उससे मुँह मोड़ कर सोने चला जाता हूँ

    सो जाता हूँ लेकिन नींद नहीं आती है

    वह अपने पैरों से धरती को धूल बनाता

    आगे बढ़ता जाता है।

    आँखों में पड़ती है

    उनके पैरों के घाव में धँसी धूल

    बहुत आगे जाकर करता है मुझे फ़ोन

    कहता है कि आज किसी ने मेरे घायल पैरों की फ़ोटो छापी है—

    किसी अख़बार में

    वह फ़ोटो भेजना चाहता है।

    वह कहता है : उसका दुःख दृश्य हो गया है देश में

    विपत्ति मनोरंजन कैसे हो गई उसकी?

    मैं चुप रह जाता हूँ

    वह उखड़ती साँस से कहता है बताओ

    मेरे घाव प्रदर्शन की वस्तु क्यों हो गए

    मेरे ऊपर तो चवन्नी किसी का बक़ाया नहीं?

    मैं चुप ही रहता हूँ

    वह भी चुप रहता है पैदल चलता

    फिर कहता है कुछ भावुक हो

    सुन रहे हो

    अकेले जाने का कोई मलाल नहीं

    बस एक बात का दुख है

    तुम मेरे साथ क्यों नहीं आए गाँव

    तुम आते तो

    तुमको अच्छा लगता

    एक माँ अभी कटोरा भर खिचड़ी दे गई हैं

    एक नदी में नहाया

    ऐसे जैसे गंगा में हम साथ नहाते थे

    उस नदी का नाम जान पाया

    उस बूढ़ी माँ का

    खिचड़ी वैसी ही बनी थी जैसा तुम खाते हो

    अचार वैसा ही जैसा तुमको पसंद है

    तुम आते तो

    मेरा अकेले भगाए जाने का दुख कम होता!

    दुख यह है कि यह मुसीबत मेरे अकेले के हिस्से आई

    बात ख़त्म करने के पहले समझाता है मुझे

    राशन अनाज रख लेना ख़ूब

    अपना ध्यान रखना

    पीछे वाले कमरे की एसी ठीक करा लेना

    बिटिया गर्मी सह नहीं पाती है

    मैं पहुँच कर फ़ोन करूँगा!

    सात दिन हो गए हैं

    उसका फ़ोन बंद है

    वह घर नहीं पहुँचा है

    बहुत उजली रात का सारा उजाला कम हो गया है

    दिन तो वैसे में काले हो गए थे

    बहुत पहले ही!

    वह पैदल कहाँ चला गया

    उसका गाँव विंध्याचल के आगे तो नहीं खिसक गया

    या वह चलने की धुन में भूल गया हो रास्ता?

    इस समय कुछ भी संभव है

    यात्रा और यातना का अंत हो

    यह संभव है!

    गाँव वहीं रह गया हो यह भी

    संभव है!

    मैं सोने जाता हूँ

    वह पैदल चलता जा रहा है मेरे भीतर

    इतनी धूल भर गई है

    कि मेरी नींद भूल गई है

    रास्ता!

    कविता लिख कर मुक्त नहीं हो सकता मैं

    कविता पढ़ कर तुम भी मुक्त नहीं हो सकते

    उत्तर दो उसका

    वह अकेले पैदल क्यों गया?

    धनंजय कुमार बताओ

    मंजुल भारद्वाज तुम भी बोलो

    वागीश सारस्वत चुप क्यों हो

    आभा भाविनी शैलेश रमन सुरबाला मयंक

    तुम में से कोई क्यों नहीं गया उसके साथ?

    बोलो बोलो

    बताओ बताओ?

    स्रोत :
    • रचनाकार : बोधिसत्व
    • प्रकाशन : कल्चर बुकलेट

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