इच्छाओं का कोरस

ichchhaon ka koras

निखिल आनंद गिरि

निखिल आनंद गिरि

इच्छाओं का कोरस

निखिल आनंद गिरि

और अधिकनिखिल आनंद गिरि

    मेरी भोली इच्छा थी कि अच्छा बनूँ

    मगर यह अंतिम इच्छा की तरह नहीं था

    और भी इच्छाएँ चलती रहीं साथ-साथ

    समोसे की इच्छा सतत बनी रही

    मगर चटनी या आलू के बिना उन्हें पूरा करना असंभव था

    दारू पीने की इच्छा जितनी रही

    उसका एक अंश भी नहीं पिया मैंने अब तक

    राजा बनने से अधिक

    उसकी आँखों में आँखें डालकर

    बात करने की इच्छा प्रबल रही

    अमेरिका या यूरोप सही

    किसी ऐसे देश में जाने की इच्छा

    अवश्य रही

    जहाँ लोग हॉर्न की आवाज़ तक से चौंक जाते हैं

    मगर उनका बुरा नसीब

    उन्हें युद्ध के टैंक की आवाज़ों से भर देता है

    उन बच्चों से मिलने की इच्छा

    जिनका बचपन माँ-बाप की लड़ाइयों में नष्ट हुआ

    या सिर्फ़ अस्पतालों में बीत गया

    रोने से अधिक

    उन्हें चुप कराने की इच्छा

    अनंत फ़िल्में देखी इच्छाओं से परे

    तब भी मार-धाड़ की इच्छा नहीं

    प्यार करने की इच्छा पर ही मन ठहरा

    अनंत बार प्यार किया उन लड़कियों से

    जिनसे नहीं मिला

    मिलने की संभावना भी नहीं

    जिनसे मिला जीवन में

    कभी अभाव में

    या समाज के दबाव में

    उनसे क्या अपेक्षा रखता

    किसी बैंक खाते की तरह

    बना रहा रिश्ते में

    भविष्य में काम आने का भ्रम लिए

    रात की इच्छाएँ एक गहरी सुरंग में ले जाती हैं

    जहाँ मैं नींद को चकमा देता हुआ प्रवेश करता हूँ

    उम्र और बेचैनी के हिसाब से

    और फिर निकलने की इच्छा

    सुबह से पहले दम तोड़ देती है

    इच्छाओं में दिल्ली आना कभी नहीं रहा

    गाँव में जीवन गुज़ारना एक इच्छा थी

    मगर अब गाँव-गाँव नहीं रहे

    और जीवन भी जीवन कहाँ रहा!

    स्रोत :
    • रचनाकार : निखिल आनंद गिरि
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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