चौराहा

chauraha

राजेंद्र धोड़पकर

और अधिकराजेंद्र धोड़पकर

    इन जगहों से धीरे-धीरे गुज़रता रहेगा सब कुछ

    इन चौराहों के कोनों मे जो कुछ छूट गया है

    स्मृतियाँ फुसफुसाहटें गानों के टुकड़े

    बेवक़्त बारिश में बह जाएँगे

    सिगरेटों के टुकड़े और धुल जाएगी

    गुड़मुड़ी काग़ज़ों की स्याही

    क्या तब भी बचा रहेगा युवावस्था का दुस्साहस

    बार-बार लौटकर आएँगे हम यहाँ जब

    सारी दुकानें बंद हो चुकी होंगी सिवाय

    एक चाय और सिगरेट की दुकान के

    आएँगे ख़ाली हाथ : एक समूचा दिन बीत चुका होगा

    अस्त-व्यस्त सोती इमारतों और सड़कों को

    सरका कर ज़रा आराम से बैठने की जगह बनाएँगे

    आएँगे ख़ाली हाथ : एक समूचा दिन बीत चुका होगा

    बार-बार दोहराएँगे अपनी असफलताएँ पश्चात्ताप से

    बचते हुए सावधानी से

    आधी रात में आवाज़ रही होगी सिर्फ़

    पास से एक अख़बार के छपने की

    कोई एक जन कहेगा घर लौटकर सोने की इच्छा

    लेकिन तब तक घर लौटने का समय बीत चुका होगा

    आधी रात के बाद शुरू होगी अचानक बारिश

    धुल जाएगा सारा चौराहा तेज़ गरजती बारिश में

    दब जाएगी प्रेस की आवाज़ बह जाएगा सब कुछ नालियों में

    सुबह होने से पहले एक पुराना ट्रक आएगा

    शहर के अंदर से

    और सारी बारिश भर कर चल देगा दूसरे शहर की ओर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दो बारिशों के बीच (पृष्ठ 7)
    • रचनाकार : राजेंद्र धोड़पकर
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1996

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